Hindi, asked by Hdrnaqviiii220, 11 hours ago

पक्षी और दीमक ' - किस विधा की रचना है?

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Answered by Namami16
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Answer:  मुक्तिबोध की कहानी ' पक्षी और दीमक ' का भावबोध साहित्‍य में स्‍वप्‍न और कल्‍पना के साथ यथार्थ का संफुटन रचना और रचनाकार को समृद्ध  साहित्‍य में स्‍वप्‍न और कल्‍पना के साथ यथार्थ का संफुटन रचना और रचनाकार को समृद्ध करता है। कथा-साहित्‍य की सुदीर्घ परंपरा में कहानी सबसे प्राचीन और विकसित विधा है।17

Answered by 9588629347
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Answer:

साहित्‍य में स्‍वप्‍न और कल्‍पना के साथ यथार्थ का संफुटन रचना और रचनाकार को समृद्ध करता है। कथा-साहित्‍य की सुदीर्घ परंपरा में कहानी सबसे प्राचीन और विकसित विधा है। कहानी की वाचिक परंपरा मनुष्‍य के साथ ही प्रारंभ हो जाती है परंतु कहानी के लिपिबद्ध स्‍वरूप आधुनिक काल की देन हैं। आधुनिक काल में अनेक रचनाकारों ने कहानी विधा को संपन्‍न करने में रचनात्‍म‍क योगदान दिया है। हिंदी साहित्‍य में गजानन माधव मुक्तिबोध शीर्ष रचनाकारों में गिने जाते हैं, परंतु यह उपलब्धि मुक्तिबोध को काव्‍य संसार के कारण हासिल हुई है।मुक्तिबोध के काव्‍य साहित्‍य का इतना अधिक अन्‍वेषण, विश्‍लेषण हुआ कि उनके रचना संसार का गद्य पक्ष उपेक्षित रह गया और मुक्तिबोध कवि के रूप में पहचाने जाने लगे। मुक्तिबोध की गद्य रचनाओं में कहानी, डायरी,निबंध,समीक्षा/आलोचना आदि विधाएँ शामिल हैं। काठ का सपना, सतह से उठता आदमी,एक साहित्यिक की डायरी, भारत:इतिहास और संस्‍कृति,कामायनी एक पुनर्विचार,नई कविता का आत्‍मसंघर्ष एवं अन्‍य निबंध, नए साहित्‍य का सौंदर्यशास्‍त्र आदि प्रमुख गद्य कृतियाँ हैं।

मुक्‍तिबोध की कहानियों को पढ़ने पर ज्ञात होता है कि लेखक अपनी समसामयिक स्थितियों का यथार्थ चित्रण करता हुआ बुद्धिजीवियों को नए संवेग के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रोत्‍साहित करता है और उनकी कहानियाँ लोक कल्‍याण हेतु दिशा-निर्देशक की भूमिका में आ जाती हैं। कहानियों के भावबोध में मुक्तिबोध के काव्‍य चिंतन की स्‍पष्‍ट छाप देखने को मिलती है। तारसप्‍तक की भूमिका की में मुक्तिबोध की स्‍वीकारोक्ति है जिससे उनकी अभिलाषाएँ, साहित्यिक विचार, रचनात्‍मक प्रक्रिया का स्‍वरूप, तत्‍व तथा सामाजिक चिंतन अधिक उजागर होते हैं। उनके अनुसार ''मैं कलाकार की स्‍थानांतरगामी प्रवृत्ति '(माइग्रेशन इंन्स्टिकट) पर बहुत जोर देता हूँ। आज के वैविध्‍यमय,उलझन से भरे, रंग-बिरंगे जीवन को यदि देखना है तो अपने वैयक्तिक क्षेत्र से एक बार तो उड़कर जाना ही होगा।बिना उसके इस विशाल जीवन समुद्र की परिसीमा,उसके तट प्रदेशों के भू-खंड आँखों से ओट ही रह जाएँगे।कला का केंद्र व्‍यक्ति है पर उसी केंद्र को अब दिशा व्‍यापी करने की आवश्‍यकता है फिर युग-संधिकाल में कार्यकर्ता उत्‍पन्‍न होते हैं,कलाकार नहीं, इस धारणा को वास्‍तविकताके द्वारा गलत साबित करना ही पडेगा।-----जीवनके इस वैविध्‍यमय विकास-स्रोत को देखने के लिए इन भिन्‍न-भिन्‍न काव्‍य रूपों को यहाँ तक कि नाट्य तत्‍व को कविता में स्‍थान देने की आवश्‍यकता है।मैं चाहता हूँ कि इस दिशा में मेरे प्रयोग हों।'' यही कारण है कि मुक्तिबोध समाज सापेक्ष साहित्‍य सृजन को वरीयता देते हैं।

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