Hindi, asked by tamannagrewal, 6 months ago

पक्षी और दीमक कहानी की मूल संवेदना क्या है।​

Answers

Answered by priyadass189
11

Answer:

'पक्षी और दीमक' की मूल संवेदना

Explanation:

मुक्तिबोध की कहानी 'पक्षी और दीमक' समाज के यथार्थ की अभिव्‍यक्ति का माध्‍यम बनती है। मुक्तिबोध के रचनाक्रम का समाज अनेक विद्रूपताओं से ग्रसित रहा और यही विद्रूपताएँ लेखक के मानस को विचलित-आलोडि़त करती रहीं। सामजिक विषमताओं से लेखक का परिचय जितना घनीभूत है, अपने साहित्‍य द्वारा सह्रदय पाठक को भी उन्‍होंने यथार्थ की इसी भूमि से परिचित कराने का प्रयास किया है। समाज में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार का यथार्थ चित्रण मुक्तिबोध की 'पक्षी और दीमक' कहानी में मिलता है। इस कहानी में उन्‍होंने फेंटसी के माध्‍यम से भ्रष्‍टाचार, युगीन यथार्थ की गहराई, बुद्धिजीवियों की संघर्षशीलता की जगह समझौता-परस्‍ती की मानसिकता की छानबीन कर मुक्तिबोध ने मानव चरित्र को सुदृढ़ कर अपने भविष्‍य को संवारने के लिए मूर्त रूप में अभिव्‍यक्ति दी है। समाज में व्‍याप्‍त आत्‍मसुख की प्रवृत्ति के कारण व्‍याप्‍त होने वाली निष्क्रियता को मुक्तिबोध 'पक्षी और दीमक' कहानी में प्रतीकात्‍मक ढंग से व्‍यक्‍त करते हैं।अधिक सुख बटोरने की चाहत में एक पक्षी गाड़ीवाले को अपना एक-एक पंख देता जात है और बदले में भोज्‍य के रूप में दो दीमक आसानी से प्राप्‍त करता है। एक दिन पक्षी के सारे पंख गाड़ीवान के पास पहुँच जाते हैं और पक्षी पंख विहीन हो जाता है और उड़ने की स्‍वतंत्रता खो देता है। अंत में एक बिल्‍ली उसे अपना ग्रास बना लेती है। पक्षी का असली सुख आत्‍मसंतुष्टि और कर्म पर विश्‍वास ही ऐसे साधन थे जो आधुनिक बुद्धिजीवी के ढुलमुल चरित्र को दृढ़ बना सकते थे।प्रतीकात्‍मकता के आधार पर देखें तो हम पाते हैं कि मुक्तिबोध ने इस कहानी में अंग्रेज व्‍यापारियों द्वारा भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को कब्‍जाने की साजिश को व्‍याख्‍यायित किया है। जहाँ दीमक बेचनेवाला अंग्रेज है तो दीमक खरीदने वाला पक्षी भारतीय मानसिकता का प्रतिनिधि। यहाँ तक कि जब बुद्धिजीवी को जगाने वाले कारक मौजूद रह कर आगाह करते हैं तो भी वह आलस्‍य में ही रहता है और तब तक नहीं समझ पाता जब तक कि उसका सब कुछ नहीं लुट जाता। 'एक दिन उसके पिता ने पंख देते देख लिया।उसने उसे समझाने की कोशिश की कि बेटे, दीमकें हमारा स्‍वा‍भाविक आहारनहीं है,और उनके लिए अपने पंख तो हरगिज ही नहीं दिए जा सकते। '(मुक्तिबोध रचनावली -तीन पृ-149) पक्षी का पिता उसे समझाता है कि उसके द्वारा किया जाने वाला कृत्‍य उचित नहीं है।वह पिता की चेतावनी को नजरंदाज कर देता है। बाद में पक्षी को पछतावा होता है और वह उड़ने की शक्ति खोने के कारण मैदान से दीमकें एकत्रित करता है।जब गाड़ीवान आता है तो पक्षी कहता है '' देखो मैंने कितनी सारी दीमकें जमा कर ली हैं। ''तो गाड़ीवाला कितनी बेरुखी से जबाव देता है '' तो मैं क्‍या करूँ।'' तो पक्षी गिडगिडाता है और कहता है ''ये मेरी दीमकें ले लो और मेरे पंख मुझे वापस कर दो।'' गाड़ीवाला कहता है ''बेवकूफ,मैं दीमक के बदले पंख लेता हूँ ,पंख के बदले दीमक नहीं।''(मुक्तिबोध रचनावली-तीन, पृ-150)अत: यह आख्‍यान मुक्तिबोध के अंधेरे से उजाले की ओर मानव को ले जाने की अवधारणा को पुष्‍ट करता है।

Answered by roopa2000
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Answer:

पाठ का नाम-पक्षी और दीमक लेखक- गजानन माधव मुक्तिबोध.

समाज में व्‍याप्‍त सुख पाने की प्रवृत्ति के कारण व्‍याप्‍त होने वाली निष्क्रियता को मुक्तिबोध 'पक्षी और दीमक' कहानी में व्‍यक्‍त करते हैं। अधिक सुख पाने की चाहत में एक पक्षी गाड़ीवाले को अपना एक-एक पंख देता जाता है और बदले में भोज्‍य के रूप में दो दीमक आसानी से प्राप्‍त करता जाता है।

Explanation:

मुक्तिबोध की कहानी 'पक्षी और दीमक' समाज के यथार्थ की अभिव्‍यक्ति का माध्‍यम बनती है। मुक्तिबोध के रचनाक्रम का समाज अनेक विद्रूपताओं से ग्रसित रहा और यही विद्रूपताएँ लेखक के मानस को विचलित-आलोडि़त करती रहीं। सामजिक विषमताओं से लेखक का परिचय जितना घनीभूत है, अपने साहित्‍य द्वारा सह्रदय पाठक को भी उन्‍होंने यथार्थ की इसी भूमि से परिचित कराने का प्रयास किया है। समाज में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार का यथार्थ चित्रण मुक्तिबोध की 'पक्षी और दीमक' कहानी में मिलता है। इस कहानी में उन्‍होंने फेंटसी के माध्‍यम से भ्रष्‍टाचार, युगीन यथार्थ की गहराई, बुद्धिजीवियों की संघर्षशीलता की जगह समझौता-परस्‍ती की मानसिकता की छानबीन कर मुक्तिबोध ने मानव चरित्र को सुदृढ़ कर अपने भविष्‍य को संवारने के लिए मूर्त रूप में अभिव्‍यक्ति दी है। समाज में व्‍याप्‍त आत्‍मसुख की प्रवृत्ति के कारण व्‍याप्‍त होने वाली निष्क्रियता को मुक्तिबोध 'पक्षी और दीमक' कहानी में प्रतीकात्‍मक ढंग से व्‍यक्‍त करते हैं।अधिक सुख बटोरने की चाहत में एक पक्षी गाड़ीवाले को अपना एक-एक पंख देता जात है और बदले में भोज्‍य के रूप में दो दीमक आसानी से प्राप्‍त करता है। एक दिन पक्षी के सारे पंख गाड़ीवान के पास पहुँच जाते हैं और पक्षी पंख विहीन हो जाता है और उड़ने की स्‍वतंत्रता खो देता है। अंत में एक बिल्‍ली उसे अपना ग्रास बना लेती है। पक्षी का असली सुख आत्‍मसंतुष्टि और कर्म पर विश्‍वास ही ऐसे साधन थे जो आधुनिक बुद्धिजीवी के ढुलमुल चरित्र को दृढ़ बना सकते थे।प्रतीकात्‍मकता के आधार पर देखें तो हम पाते हैं कि मुक्तिबोध ने इस कहानी में अंग्रेज व्‍यापारियों द्वारा भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को कब्‍जाने की साजिश को व्‍याख्‍यायित किया है। जहाँ दीमक बेचनेवाला अंग्रेज है तो दीमक खरीदने वाला पक्षी भारतीय मानसिकता का प्रतिनिधि। यहाँ तक कि जब बुद्धिजीवी को जगाने वाले कारक मौजूद रह कर आगाह करते हैं तो भी वह आलस्‍य में ही रहता है और तब तक नहीं समझ पाता जब तक कि उसका सब कुछ नहीं लुट जाता। 'एक दिन उसके पिता ने पंख देते देख लिया।उसने उसे समझाने की कोशिश की कि बेटे, दीमकें हमारा स्‍वा‍भाविक आहारनहीं है,और उनके लिए अपने पंख तो हरगिज ही नहीं दिए जा सकते। '(मुक्तिबोध रचनावली -तीन पृ-149) पक्षी का पिता उसे समझाता है कि उसके द्वारा किया जाने वाला कृत्‍य उचित नहीं है।वह पिता की चेतावनी को नजरंदाज कर देता है। बाद में पक्षी को पछतावा होता है और वह उड़ने की शक्ति खोने के कारण मैदान से दीमकें एकत्रित करता है।जब गाड़ीवान आता है तो पक्षी कहता है '' देखो मैंने कितनी सारी दीमकें जमा कर ली हैं। ''तो गाड़ीवाला कितनी बेरुखी से जबाव देता है '' तो मैं क्‍या करूँ।'' तो पक्षी गिडगिडाता है और कहता है ''ये मेरी दीमकें ले लो और मेरे पंख मुझे वापस कर दो।'' गाड़ीवाला कहता है ''बेवकूफ,मैं दीमक के बदले पंख लेता हूँ ,पंख के बदले दीमक नहीं।''(मुक्तिबोध रचनावली-तीन, पृ-150)अत: यह आख्‍यान मुक्तिबोध के अंधेरे से उजाले की ओर मानव को ले जाने की अवधारणा को पुष्‍ट करता है।

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