Hindi, asked by againansari68, 3 months ago

पक्षीऔरबादलकीचिटिठणेमेपेड़पौधेपानी औरपहाड़कियाबढपातेहैं​

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Answered by sakshiswaragawande12
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Answer:

चातक एक पक्षी है। इसके सिर पर चोटीनुमा रचना होती है। भारतीय साहित्य में इसके बारे में ऐसा माना जाता है कि यह वर्षा की पहली बूंदों को ही पीता है। अगर यह पक्षी बहुत प्यासा है और इसे एक साफ़ पानी की झील में डाल दिया जाए तब भी यह पानी नहीं पिएगा और अपनी चोंच बंद कर लेगा ताकि झील का पानी इसके मुहं में न जा सके। यह पक्षी मुख्यतः एशिया और अफ्रीका महाद्वीप पर पाया जाता है। इसे मारवाडी भाषा में 'मेकेवा' और 'पपीया' भी कहा जाता हैं।

चातक पक्षी

"एक एव खगो मानी चिरंजीवतु चातकम्। म्रियते वा पिपासार्ताे याचते वा पुरंदरम्।।"

अर्थात "चातक ही एक ऐसा स्वाभिमानी पक्षी है, जो भले प्यासा हो या मरने वाला हो, तब भी वह इन्द्र से ही याचना करता है। किसी अन्य से नहीं अर्थात केवल वर्षा का जल ही ग्रहण करता हैं, किसी अन्य स्रोत का नहीं।"

जनश्रुति के अनुसार चातक पक्षी स्वाती नक्षत्र में बरसने वाले जल को बिना पृथ्वी में गिरे ही ग्रहण करता है, इसलिए उसकी प्रतीक्षा में आसमान की ओर टकटकी लगाए रहता है। वह प्यासा रह जाता है। लेकिन ताल तलैया का जल ग्रहण नहीं करता।

उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में चातक पक्षी को चोली कहा जाता है। जिसके बोर में लोक विश्वास है कि यह एकटक आसमान की ओर देखते हुए उससे विनती करता है कि ‘सरग दिदा पाणी दे पाणी दे’ अर्थात आसमान भाई पानी दे पानी दे।

चोली के जन्म के विषय में गढ़वाल क्षेत्र में एक रोचक कथा प्रचलित है।

वहां के किसी हरे भरे गांव में एक वृद्धा अपनी युवा बेटी और बहू के साथ बहुत ही हंसी खुशी के दिन बिता रही थी। वह बहू और बेटी के बीच कोई मतभेद नहीं करती थी। दोनों को समान भोजन देती और समान काम करवाती थी। दोनों बहू बेटी भी हिल मिलकर रहती थीं। न आपस में लड़ना झगड़ना और न कोई ईर्ष्या द्वेष। दोनों में अंतर था तो बस यही कि बहू अपना काम पूरी ईमानदारी और तन्मयता से संपन्न करती थी जबकि बेटी उसे जैसे तैसे फटाफट निपटाने की फिराक में रहती।

मां इस बात के लिए उसे कई बार टोक भी चुकी थी और बार बार उसे अपनी भाभी से सीख लेने के लिए कहती थी, लेकिन उसके काम पर जूं तक न रेंगती, उस पर जैसे कोई असर ही नहीं होता था।

एक बार की बात है, गर्मियों के मौसम में लगातार कोल्हू पेरते पेरते बैल थक गए।

वृद्धा को समझ में आ गया कि बैल प्यासे हैं, लेकिन घर में बैलों को पिलाने लायक पर्याप्त पानी मौजूद ही न था। बैलों की प्यास बुझाने का एकमात्र उपाय था, उन्हें गधेरे पहाड़ी नदी तक ले जाना जो गांव से लगभग एक डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर था। जेठ के महीने की भरी दोपहर में बैलों को गधेरे तक ले जाकर पानी पिला लाना, अपने आपमें कठिन काम तो था ही।

तपती दोपहर में बैलों को ले बहू को भेजे या बेटी को, इस बात को लेकर वृद्धा मुष्किल में पड़ गई। दोनों में से किसी एक को भेजना उसे उचित नहीं लग रहा था। अंत में सोचकर उसने एक युक्ति निकाल ही ली। उसने बहू और बेटी दोनो को प्रलोभन देते हुए कहा कि वे एक एक बैल को पानी पिलाकर ले आएं और दोनों में से जो पहले पानी पिलाकर घर लौटेगा, उसे गरमागरम हलुआ खाने को मिलेगा।

हलुए का नाम सुनते ही दोनों के मुंह में पानी भर आया। हामी भरते हुए बहू और बेटी दोनों ही अपने अपने बैल को लेकर चल पड़ीं गधेरे की ओर।

बहू बिना कुछ सोचे अपने बैल को हांके जा रही थी गधेरे की ओर जबकि बेटी का खुराफाती दिमाग बड़ी तेजी से कोई उपाय तलाश रहा था। अंत में मन ही मन कुछ सोचकर वह भाभी से बोली कि दोनों अलग अलग रास्तों से जाते हैं। देखते हैं गधेरे तक कौन पहले पहुंचता है।

सीधी सादी भाभी ने चुपचाप हामी भर ली। बेटी को तो रह रहकर घर में बना हुआ गरमा गरम हलुआ याद आ रहा था। ऊपर से गरमी इतनी ज्यादा थी कि उसका गधेरे तक जाने का मन ही नहीं हो रहा था। अचानक उसे अपनी बेवकूफी पर हंसी भी आई और गुस्सा भी। वह सोचने लगी जानवर भी क्या कभी बोल सकता है। किसे पता चलेगा कि मैंने बैल को पानी पिलाया भी नहीं। मां से जाकर कह दूंगी कि पिला आई पानी बैल को। यह विचार आते ही बिना आगा पीछा देखे उसने बैल को घर की दिशा में मोड़ दिया। बेचारा प्यासा बैल बिना पानी पिए ही घर की ओरर चलने लगा।

बेटी को देखते ही मां ने प्रसन्न होकर पूछा, ”ले आई बेटी पानी पिलाकर बैल को।“ हां, मां कहते हुए वह सीधे हलुए की ओर लपकी। खूंटे पर बंधा प्यासा बैल उसे मजे से हलुआ खाते देख रहा था लेकिन वह बेजुबान कुछ बोल न सका। प्यास के मारे थोड़ी में ही उसके प्राण पखेरू उड़ गए। वह मरते समय लड़की को शाप दे गया कि जैसे तूने मुझे पानी के लिए तरसाया, वैसे ही सृष्टि पर्यंत तू भी चोली बन बूंद बूंद पानी के लिए तरसती रहना।

कहते हैं कि लड़की बैल के शाप से उसी समय चोली बन गई और पानी के लिए तरसने लगी। ताल तलैये पानी से भरे थे लेकिन उसे उनमें जल के स्थान पर रक्त ही रक्त नजर आ रहा था। तब से वह आसमान की ओर टकटकी बांधे आज भी चिल्लाती रहती है। ‘सरग दिदा पाणी दे पाणी दे।’ अर्थात आसमान भाई पानी दे दे।

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