Hindi, asked by nibhadey13, 10 months ago

पक्षियों के लिए अरमान है और वे सीमाहीन क्षितिज तक पहुंचने के लिए क्या कल्पना करते हैं इन हिंदी रिटन बाय शिवमंगल सिंह हम पक्षी उन्मुक्त गगन के​

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Answered by AkshatSir
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Answer:

हम पंछी उन्मुक्त गगन के

पिंजरबद्ध न गा पाएंगे

कनक-तीलियों से टकराकर

पुलकित पंख टूट जाएंगे ।

हम बहता जल पीनेवाले

मर जाएंगे भूखे-प्यासे

कहीं भली है कटुक निबोरी

कनक-कटोरी की मैदा से ।

स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में

अपनी गति, उड़ान सब भूले

बस सपनों में देख रहे हैं

तरू की फुनगी पर के झूले ।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते

नील गगन की सीमा पाने

लाल किरण-सी चोंच खोल

चुगते तारक-अनार के दाने ।

होती सीमाहीन क्षितिज से

इन पंखों की होड़ा-होड़ी

या तो क्षितिज मिलन बन जाता

या तनती साँसों की डोरी ।

नीड़ न दो, चाहे टहनी का

आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो

लेकिन पंख दिए हैं तो

आकुल उड़ान में विघ्न न डालो ।

Explanation:

हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता का सारांश (Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke Summary): कवि शिवमंगल सिंह सुमन ने हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता में पक्षियों के जरिये स्वतंत्रता के महत्व का वर्णन किया है। कविता में पक्षी कहते हैं कि हम खुले आसमान में घूमने वाले प्राणी हैं, हमें पिंजरे में बंद कर देने पर हम अपने सुरीले गीत नहीं गा पाएंगे।

हमें सोने के पिंजरे में भी मत रखना, क्योंकि हमारे पँख पिंजरे से टकराकर टूट जाएंगे और हमारा जीवन ख़राब हो जाएगा। हम स्वतंत्र होकर नदी-झरनों का जल पीते हैं, पिंजरे में हम भला क्या खा-पी पाएंगे। हमें गुलामी में सोने के कटोरे में मिले मैदे से ज्यादा, स्वतंत्र होकर कड़वी निबौरी खाना पसंद है।

आगे कविता में पंछी कहते हैं कि पिंजरे में बंद होकर तो पेड़ों की ऊँची टहनियों पर झूला झूलना अब एक सपना मात्र बन गया है। हम आकाश में उड़कर इसकी हदों तक पहुंचना चाहते थे। हमें आकाश में ही जीना-मरना है।

अंत में पक्षी कहते हैं कि तुम चाहे हमारे घोंसले और आश्रय उजाड़ दो। मगर, हमसे उड़ने की आज़ादी मत छीनो, यही तो हमारा जीवन है।

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