पक्षियों का पालना उचित है या अनुचित ? आज के शहरी जीवन से पक्षियों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का वर्णन करते हुए उसे सुधरने के उपायों को लिखिए |
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संवाद सहयोगी, सतनाली : करीब एक दशक पूर्व तक पेड़-पौधों व घर आंगन में तरह-तरह के पक्षियों को चहकते आसानी से देखा जाता था, लेकिन अब ये मात्र किताबों के पन्नों तक ही सिमटकर रह गए हैं। कोई ऐसा नहीं होगा जिसने बचपन में चिड़ियों के घोंसलों को न निहारा हो व इनको देखने में उत्सुकता न दिखाई हो और इन्हें पकड़ने की कोशिश न की हो। बदलते परिवेश में सब कुछ बदल रहा है। अब इन पक्षियों का घर आंगन में सुबह-सुबह चहचहाना अब कम हो गया है। इन पक्षियों की सुरीली आवाजें सुनकर ही लोग सुबह सवेरे उठ जाया करते थे।
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