Hindi, asked by poonamsachin1986, 11 months ago

पक्षियों से पारवयाण को कोन से लाभ है?​

Answers

Answered by Anonymous
0

पर्यावरण को संतुलित रखने में पेड़-पौधों के साथ ही पशु-पक्षियों की भूमिका भी अहम है। लेकिन मनुष्य के अत्यधिक हस्तक्षेप के चलते इन सबकी संख्या कम होती जा रही है। यदि हम जल्द नहीं चेते तो स्थिति भयावह हो सकती है। कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग से जहां पक्षियों की संख्या कम होती जा रही हैं, वहीं कुछ प्रजातियां तो विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी हैं। गर्मियों का मौसम विशेषकर पक्षियों के लिए बहुत कष्टप्रद होता है। उन्हें बचाने के लिए सभी को थोड़ा-थोड़ा प्रयास करना होगा। कम से कम एक सकोरा पानी का भरकर छायादार स्थान में रख दें तो बहुत से पंछियों की जान हम बचा सकते हैं।

मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति के साथ लगातार छेड़छाड़ करता जा रहा है। इसके दुष्परिणाम भी साथ-साथ दिखाई देने लगे हैं, हालांकि पर्यावरणविदों का कहना है कि ये दुष्परिणाम लंबी अवधि के होते हैं और अभी जो नजर आ रहे हैं, वे सौंवे हिस्से के बराबर हैं। पर्यावरणविद डॉ. अजय गुप्ता के अनुसार हम धीरे-धीरे करके ईको सिस्टम को खराब करते जा रहे हैं। ईको सिस्टम में हर जीव जंतु की अहम भूमिका होती है। इसके खराब होने का असर हर क्षेत्र में दिखाई पड़ रहा है।

डॉ. अजय गुप्ता के अनुसार ईको सिस्टम का महत्वपूर्ण घटक पेड़-पौधे हैं। इनकी लगातार कटाई का असर पक्षियों व वन्य प्राणियों पर भी पड़ रहा है। पेड़ों की संख्या कम होने से पक्षियों को न तो घोंसले बनाने के लिए जगह मिल पा रही है और न ही पर्याप्त मात्रा में भोजन-पानी मिल रहा है। पेड़ों की संख्या कम होने से बारिश भी कम होती है। जितनी अधिक हरियाली होती है, पक्षियों को पानी की जरूरत भी उतनी कम होती है। पेड़-पौधे तापमान को भी सामान्य बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।

पर्यावरणविद रघु¨वदर यादव के अनुसार खेती में कीटनाशकयुक्त बीजों का प्रयोग पक्षियों के लिए सर्वाधिक नुकसानदायक है। इन्हें खाने से पक्षियों की संख्या बहुत कम रह गई है। कई पक्षी तो विलुप्त होने की कगार तक पहुंच चुके हैं। दूसरी तरफ, गांवों में जोहड़ व तालाब सूख चुके हैं, जिनके किनारे पेड़ों पर पंछी घोंसले बनाकर रहते थे व चहचहाट करते थे। क्षेत्र में ¨सचाई के लिए फव्वारा का प्रयोग करने से ट्यूबवेल पर भी पंछियों को पानी नहीं मिल पाता। सरकार की ओर से भी जीव-जंतुओं के लिए जंगलों में पानी का कोई प्रबंध नहीं किया जाता। सामाजिक संस्थाओं द्वारा जरूर लोगों को घरों में पक्षियों के लिए पानी के सिकोरे भरकर रखने के लिए प्रेरित किया जाता है।

वन्य प्राणी निरीक्षक सुनील तंवर के अनुसार गर्मियों में पक्षियों को भी प्यास अधिक लगती है जबकि पानी की उपलब्धता कम हो जाती है। सरकार की ओर से जंगलों में पानी की व्यवस्था पूरी तरह नहीं की जा सकती। इससे पक्षियों में भी डिहाइड्रेशन की शिकायत होती है। क्षेत्र में 45 डिग्री तक तापमान पहुंच जाता है और यह प्रत्येक प्राणी के लिए कष्टकारी होता है। यदि पंछियों को पानी और पेड़ पर्याप्त मिल जाएं तो उनकी जान बचाई जा सकती है।

-------------

खेतों की आग भी जला रही घोंसले

किसानों द्वारा खेतों में अपशिष्ट जलाने के लिए लगाई जाने वाली आग न केवल खेत की उर्वरा शक्ति को घटाती है बल्कि रेंगने वाले जीव-जंतुओं के साथ ही पक्षियों के प¨रदे भी आग में जलाकर नष्ट कर रही है। बहुत से पक्षी खेतों में झाड़ियों और फसल के बीच घोंसला बनाकर अंडे देते हैं। खेतों में लगाई जाने वाली आग इन अंडों के साथ ही पक्षियों को भी जलाकर नष्ट कर देती है। क्षेत्र में टटीहरी, बटेर, पेडीफील्ड, तीतर, बुलबुल आदि खेतों में नीचे जमीन पर घोंसले बनाकर अंडे देते हैं। आग में ये घोंसले व अंडे जलकर नष्ट हो जाते हैं। इनके अलावा शिकारी भी बटेर, तीतर, खरगोश आदि का शिकार कर इनकी संख्या में और कमी कर रहे हैं।

Follow me

Similar questions