पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान ।।
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पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान ।।
कबीर जी दोहे में समझाते है कि मनुष्य एक दूसरे से तुलना , पक्ष-विपक्ष , धार्मिक-भेद-भव में पड़ कर वह अपने अस्तित्व को भूल गया है | मनुष्य ईश्वर को भी भूलने लग गए है |
बिना किसी बिना किसी द्वेष-भाव के निष्पक्ष होकर जो मनुष्य की भक्ति करता है वही मनुष्य मोक्ष को प्राप्त होते है | जो मनुष्य सच्चे मन से भक्ति करता है वही सज्जन मनुष्य कहलाते है | इसलिए हमें भेद-भाव को छोड़कर निस्वार्थ भक्ति करनी चाहिए , तभी हम मनुष्य का कल्याण होगा |
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