pal 17. अर्धरात्रि में संसार को कौन ढक लेता है ? (अगहन अंधकार (सातारे रब भय (दाकोई नहीं
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संसार को अंधकार आधी रात को ढक लेता है।
‘पथिक’ कविता में कवि बताता है कि आधी रात को संसार में गहरा अंधकार छा जाता है और आकाश की छत पर तारे बिखर जाते हैं, यानी आकाश में तारे चमकने लगते हैं तब इस इस आधी रात में घोर अंधकार संसार को ढक लेता है और आकाश की छत पर अपनी तारे भी बिखेर देता है।
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अर्धरात्रि में संसार को गहरा अंधकार ढक लेता है।
- पथिक कविता में कवि राम नरेश त्रिपाठी स्वयं को पथिक कह रहे है।
- कवि कहते है कि काली घनी रात में चारो ओर अंधेरा छाया रहता है तथा से आकाश को अंतरिक्ष की छत कहते हुए कह रहे है कि अंतरिक्ष की छत झिलमिल सितारों से जगमगा रही है।
- यह दृश्य बड़ा सुन्दर दिखता है तथा इस दृश्य को देखने मुस्कुराते हुए इस जग का स्वामी सूर्य धीमे धीमे आता है और वह आकाश गंगा के सौंदर्य को निहारता है व उसकी सुन्दरता देखकर मधुर गीत गाता है। इसका अर्थ है कि रात धीरे धीरे बीतती है तथा सूर्योदय समीप आने लगता है।
- यह दृश्य बड़ा मनोरम लगता है व देखने लायक होता है।
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