पलानो।
(1)
राग टोड़ी
उद्धव ! यह मनं निश्चय जानो।
मन क्रम बच मैं तुम्हें पठावत ब्रज को तुरत
पूरन ब्रह्म, सकल, अविनासी ताके तुम हौ ज्ञाता ।
रेख, न रूप, जाति, कुल नाहीं जाके नहिं पितु माता ।।
यह मत दै गोपिन कहु आवहु बिरह नदी में भासित
सूर तुरत यह जाय कहौ तुम ब्रह्म बिना नहिं आसति ।। .
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