पल्स पोलियो के लिए सप्ताह का कौन सा दिन चुना गया है और क्यों?
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आज की सुहानी सुबह हमने जैसे ही लैपटॉप खोला, एक अचंभा हुआ. मज़ा आ गया. यह अचंभा क्या था, यह तो हम आपको आखिर में बताएंगे, फ़िलहाल उस सुहानी सुबह की सुहानी दास्तां. रोज़ गुड मॉर्निंग के साथ सुंदर अनमोल वचन भेजने वाले एक बंधु की सुहानी-मनभावन मेल हाज़िर थी. गुड मॉर्निंग के साथ सुंदर अनमोल वचन भेजने वाली एक सखी द्वारा नियमित रूप से आने वाली मेल ने भी मन को लुभा लिया. नए ब्लॉग पर कामेंट्स भी काफी आ गए थे, चाय के साथ उनका भी जायज़ा लिया.
उसके बाद अपने नियमित समय पर मैं सुबह की सैर के लिए निकली. दिल्ली में रात को कहीं-कहीं बरसात होने के कारण ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी. मन-मयूर झूम रहा था. ऐसे में खुशबहार नज़ारों ने भी मन को मोह लिया.
सबसे पहले अपनी सोसाइटी के गॉर्डों ने मुस्कुराकर राम-राम का जवाब दिया. शुरुआत यहीं से हुई. दो कदम आगे चले तो देखा हमारा एक गॉर्ड ‘मटका मैन’ की भूमिका निभा रहा है. ‘मटका मैन’ को आप ‘सट्टा मैन’ मत समझ लीजिएगा. ‘मटका मैन’ यानी सबको ठंडा पानी पिलाने वाला. सोसाइटी के बाहर रखे हुए मिट्टी के 6 मटकों को अच्छी तरह धोकर पानी भरके रख रहा था, ताकि आते-जाते लोगों की प्यास बुझाई जा सके. यह नज़ारा देखकर दिल खुश हो गया. यह शीतल जल-सेवा का सुखद नज़ारा था.
आगे चले तो अगली सोसाइटी का माली दीवार के साथ क्यारियों में लगे पेड़-पौधों को बड़े प्यार से पानी से तर कर रहा था. मन को ठंडक-पर-ठंडक मिलती चली गई. अपने सामने प्रतिदिन ऐसे ही विश्व पर्यावरण दिवस मनता हुआ देखकर मन को खुश तो होना ही था.
ठंडी हवा के लिए जगत नियंता के शुकराने करते हुए मैंने थोड़ी देर सैर की. इतने में ही साथ के पॉर्क में सहेलियों से मिलने का समय हो गया. वहां माली ने सुबह चार बजे से पानी का पाइप लगाकर पूरे लॉन को पानी से तर कर दिया था. इसके दो कारण थे. एक तो सारे दिन लॉन में ठंडक रहेगी, दूसरे बच्चे वहां क्रिक्रेट खेलकर लॉन को खराब नहीं कर पाएंगे. ठंडी-ठंडी हवा, ठंडी-ठंडी घास में हमने कुछ व्यायाम किया और रोज़ की तरह एकाध भजन गाकर दिन की सुरीली शुरुआत की.