पलाश के फूल के अंडकोष की दो विशेषताएं
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अंडकोष की सूजन : टेसू के फूल की पोटली बनाकर नाभि के नीचे बांधने से मूत्राशय (वह स्थान जहां पेशाब एकत्रित होता हैं) के रोग समाप्त हो जाते हैं और अंडकोष की सूजन भी नष्ट हो जाती है। टेसू की छाल को पीसकर लगभग चार ग्राम पानी के साथ सुबह और शाम देने से अंडकोष का बढ़ना खत्म हो जाता है।
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सिलीगुड़ी [जागरण स्पेशल]। ढाक के तीन पात। इस कहावत को हम बार-बार अपनी बोलचाल या लिखने के दौरान प्रयोग करते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों के पता है कि यही ढाक हमारे स्वास्थ्य के लिए कितना उपयोगी है। कितने रोगों की दवा है। इसे पलाश भी कहते हैं। इस समय पलाश फूलने लगे हैं। इसके फूल को मानिए तो सोने से भी कीमती हैं। इसकी फलियों के प्रयोग से बुढ़ापा दूर भागता है। इसके गुणों के ही कारण इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास वेदों और पुराणों में बताया गया है। इस अद्बुत पेड़ के सभी अंग हमारे लिए दवा हैं। इसके फूलों से रंग बनाकर यदि होली खेलें तो कई रोगों से अपने आप निजात मिल जाती है।
होली का एक गीत भी प्रसिद्ध है- बजारे से रंग जिन लियाया पिया, हम टेसू से खेलब होरी...। टेसू के फूलों से बने रंग से होली खेलने से शरीर मेें रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि होती है। यह मौसम का संधिकाल होता है। इसके कारण चेचक सहित तमाम व्याधियां हमला करती हैं। इन सभी मौसमी बीमारियों से टेसू का रंग हमारी रक्षा करता है। लिहाजा केमिकलयुक्त रंगों से होली खेलने के बजाए इसे प्रमुखता दें। इस समय हर जगह टेसू के फूल हैं। उन्हें समेट कर आसानी से रंग बनाया जा सकता है।
आइए जानते हैं इसके औषधीय गुणों के बारे में...
खूनी बवासीर : टेसू के पंचाग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) की राख लगभग 15 ग्राम तक गुनगुने घी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में आराम होता है। इसे कुछ दिन लगातार खाने से बवासीर के मस्से सूख जाते हैं।
जोड़ों का दर्द : टेसू के बीजों को बारीक पीसकर शहद के साथ दर्द वाले स्थान पर लेप करने से संधिवात में लाभ मिलता है।
अंडकोष की सूजन : टेसू के फूल की पोटली बनाकर नाभि के नीचे बांधने से मूत्राशय (वह स्थान जहां पेशाब एकत्रित होता हैं) के रोग समाप्त हो जाते हैं और अंडकोष की सूजन भी नष्ट हो जाती है। टेसू की छाल को पीसकर लगभग चार ग्राम पानी के साथ सुबह और शाम देने से अंडकोष का बढ़ना खत्म हो जाता है।
पलाश के पत्तलः पलाश के पत्तों से बने पत्तल पर नित्य कुछ दिनों तक भोजन करने से शारीरिक व्याधियों का शमन होता है। यही कारण है के प्राचीनकाल से पलाश के पत्तों से निर्मित पत्तलों पर भोजन किया जाता है।
छाल : नाक, मल-मूत्र मार्ग या योनि से रक्तस्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (50 मिली) बनाकर ठंडा होने पर मिश्री मिलाकर पिलाएं।
रक्त एवं पित्त विकार मेंः पलाश की ताजा निकाली हुई छाल के काढ़े का सेवन कुछ दिनों तक करें। काढ़ा पानी में बनाएं। इसके लिए दो सौ मिली पानी में दस ग्राम छाल को पर्याप्त उबालकर काढ़ा तैयार करें।
गोंद : पलाश का एक से तीन ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध या आंवला रस के साथ लेने से बल-वीर्य की वृद्धि होती है तथा हड्डियां मजबूत बनती हैं। यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।
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yede chale
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mc.stan 80000 hajar ka shuj he lavade tera gar jayenga es me