Hindi, asked by sonupatela014, 7 months ago

pallavan se kya aashay hai visheshta sahit spasht kijiyeपल्लवन से क्या आशय है विशेषता सहित स्पष्ट कीजिए ​

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Answered by shishir303
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पल्लवन का आशय...

‘पल्लवन’ हिंदी गद्य की एक विधा है, जिसमें किसी विषय-वस्तु को एक अलग दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर उसका एक विस्तृत रूप से विवेचन किया जाता है। वो विषय वस्तु कोई मुहावरा, लोकोक्ति या कोई सामयिक घटना भी हो सकती है।’

उदाहरण के लिये...

“थोथा चना बजा बाजे घना”

ये प्रसिद्ध लोकोक्ति है जिसका अर्थ ये है कि जो चना अंदर से खोखला होता है वो हिलाने पर आवाज करता है।

इसका लोकोक्ति का भावार्थ ये है कि जो व्यक्ति कम ज्ञानी होता है वो ज्ञानी होने दिखावा बहुत करता है और बड़ी-बड़ी बाते करके अपनी कमी को छुपाने का प्रयास करता है और ये दिखाने का प्रयत्न करता है कि वो ही सर्वश्रेष्ठ है।  

पल्लवन से किसी बात को एक अलग और विशिष्ट अर्थ में व्यक्त किया जाता है, जिससे उस बात को नया रूप और अर्थ मिलता है।

थोथा चना बाजे घना का पल्लवन...

नेताजी पहले एक पत्रकार थे। सरकार की खूब आलोचना करते। सरकारी की कोई नीति ऐसी नही थी जो उनकी तीखी नजरों से बचकर बिना आलोचना के निकल जाती हो। कुछ जनता भी त्रस्त थी सरकार की नीतियों से इसलिये पत्रकार महोदय की बातों को जनता भी पसंद करने लगी। धीरे-धीरे पत्रकार महोदय की लोकप्रियता बढ़ने लगी और उनको भी अपनी लोकप्रियता पर गुमान हो गया। जहां लोकप्रियता होती वहां चाटुकार भी आ जाते हैं। चाटुकारों ने पत्रकार महोदय के कान भर दिये कि उनकी जगह राजनीति में है। पत्रकार महोदय को भी राजनीति के कीड़े ने कट लिया। उन्हें लगने लगा कि वो अपने विचारों से व्यवस्था में परिवर्तन ला सकते हैं। बस अच्छा भला पत्रकारिता का करियर छोड़कर राजनीति में घुस गये। अब पत्रकार महोदय में नेताओं वाले गुण आ गये थे। अपनी बड़ी-बड़ी बातों से और सरकार की आलोचना करके उन्होंने सरकार से त्रस्त जनता को प्रभावित भी कर लिया। पत्रकार महोदय नेता जी बन गये। सूबे के मुख्यमंत्री भी बना दिये गये। अब पत्रकार महोदय पूरे नेताजी बन चुके थे। जिन नेताओं की वो एसी कमरों में बैठ पानी पी-पीकर आलोचना करते थे अब खुद उस जमात में शामिल हो चुके थे।

अब पत्रकार महोदय उर्फ नेता जी बदल चुके थे। सत्ता के गुमान में अब उन्होंने अपने उन सारे विचारों को तिलांजलि दे दी जिसके बल पर उन्होंने जनता के दिलों में जगह बनाई थी। वो उन्हीं कदमों पर चलने लगे जिस पर पिछली सरकार चलती थी। जनता के मुद्दों से अब उन्हे कोई सरोकार नही रह गया था। वो भी सरकार में माल-मलाई खाने में लग गये।

पत्रकार महोदय ने सिद्ध कर दिया कि वो सिर्फ बातों के वीर थे अर्थात ‘थोथा चना बाजे घना’ कहावत को उन्होंने अपने ऊपर पूरी तरह चरितार्थ कर दिया था।

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