Hindi, asked by rohany, 1 year ago

panchi ki atmkatha
essay

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Answered by zinat
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पक्षी की आत्मकथा

संसार में अनगिनत प्राणी निवास करते हैं । उन्हें जलचर, थलचर और नभचर प्राणी जैसे तीन भागों में बाँटा जाता है । जलचर यानि पानी में रहने वाले । थलचर यानि धरती पर चलने-फिरने और रहने वाले मनुष्य और कई तरह के पशु, कीड़े-मकोड़े, साँप-बिच्छू आदि । नभचर यानि आकाश के खुलेपन में उड़ पाने में समर्थ पक्षी जाति. के प्राणी । इन के पंख होते हैं, जिन के बल पर ये उड़ पाने में समर्थ हुआ करते हैं ।

स्पष्ट है कि मैं पक्षी यानि नभचर श्रेणी का प्राणी हूँ । मेरा अधिवास या घर-घोंसला आदि जो कुछ भी कहो, वह वृक्षों की शाखाओं पर ही अधिकतर हुआ करता है-यद्यपि मेरे कुछ भाई पेड़ों के तनों में खोल बना कर. घरों के रोशनदानों, छतों, पहाड़ी गारों या जहाँ कहीं भी थोड़ी-सी जगह मिल जाए, वहीं अपना नन्हा-सा नीड् (घोंसला) बना कर रह लिया करते हैं । ही, टिटीहर खा। जैसे मेरे कुछ पक्षी भाई धरती के ऊपर या भीतर कहीं खोल बना कर भी रह लेते हैं । अपने सम्बन्ध में और कुछ बताने से पहले मैं अपनी उत्पत्ति के बारे में भी बता दूँ तो अच्छा रहेगा ।

संसार में पक्षी, पशु और मनुष्य आदि जितने भी प्राणी हैं; उन्हें क्रमश: अण्डज, उद्‌भिज, पिण्डज और स्वेदज चार प्रकार के माना गया है । जो प्राणी अण्डे से जन्म लेते हैं; उन्हें अण्डज कहा जाता है । जो बीज आदि के बोने से जन्म लिया करते हैं; उन्हें उद्‌भिज कहा और माना जाता है । जो शरीर से सीधे उत्पन्न हुआ करते हैं; उन्हें पिण्डज कहा गया है । इसी प्रकार जिन प्राणियों का जन्म स्वेद अर्थात् पसीने से हुआ करता है, उन्हें स्वेदज कहा जाता है ।

धरती पर विचरण करने वाले मनुष्य ओर तरह-तरह के पशु पिण्डज प्राणी माने गए हैं । जिन्हें नभचर कहा-माना जाता है, अर्थात् आकाश के खुले वातावरण में विचरण करने या उड़ सकने वाले प्राणी अण्डज हुआ करते हैं । वनस्पतियाँ आदि उद्‌भिज कहलाती हैं और जलचर जीव प्राय: स्वेदज होते है । स्पष्ट है कि हम पक्षी अण्डज जाति के प्राणी हैं । तो मैं पक्षी हूं-हजारों लाखों जातियों में से एक जाति का पक्षी, जो आपके घरों के आस-. पास के वन-उपवनों में, पेड़-पौधो में पाया जाता है ।

भगवान् ने मेरे पक्षों को चित्र- (वे चित्र रंगों वाला बनाया है । हम सभी पक्षियों की बुनियादी बनावट तो प्राय: समान ही हुआ करती है, ही आकार-प्रकार में कछ अन्तर अवश्य हो जाता हूँ । आकार-प्रकार के समान ही रंग-रूप भी प्राय: हर जाति के पक्षी का कछ भिन्न और अलग ही हुआ करता है । दो पैर, दो आँखें, एक लम्बी या छोटी चोंच, शरीर पर छोटे-बड़े पंख और रोम, कूद या आकार-प्रकार के अनुरूप छोटे या बड़े-बड़े मजबूत डैने जिन के कारण हम पक्षी उड़ पाने में समर्थ हुआ करते है, सभी के ही रहा ही करते है । हम पक्षियों की बोली भी प्राय: अलग-अलग हुआ करती है ।

किसी की बोली बहुत मधुर-मनहर, किसी की कठोर-कर्कश और किसी की सामान्य हुआ करती है । इसी कारण मधुर-मनहर बोली को गाना और कठोर-कर्कश को काँव-काँव करना या कड़वी कहा जाता है । हम पक्षियों की बोली को आम तौर पर एक शब्द में ‘चहचहाना’ ही कहा. करते हैं । किसी वन उपवन में हम पक्षियों का सम्मिलित चहचहाना आप आदमियों को बड़ा ही अच्छा लगा करता है ।
Answered by ramshinde64
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Explanation:

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