Pani ki khani 20 lines in chapter
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[][]→ मैं आगे बढ़ा ही था कि बेर की झाड़ी पर से मोती-सी एक बूँद मेरे हाथ पर आ पड़ी। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मैंने देखा कि ओस की बूँद मेरी कलाई पर से सरक कर हथेली पर आ गई।
आश्चर्य का ठिकाना न रहा – हैरानी का अंत न होना
कलाई – हाथ का अगला हिस्सा
लेखक कहते हैं कि किसी काम से वह रास्ते पर जा रहे थे कि बेर की झाड़ी पर से मोती-सी एक बूँद लेखक के हाथों पर आ पड़ी। तो जब लेखक ने देखा कि ओंस की बूँद उनकी कलाई पर आकर गिर गई है और कलाई से सरक कर हथेली पर आ गई है तो ओंस की इस बूँद को देखकर वो हैरान हो उठे कि कोई बूँद पेड़ पर से आकर उनके हाथ पर कैसे गिर सकती है, यह जानने के लिए उनकी जिज्ञासा जाग उठी।
मेरी दृष्टि पड़ते ही वह ठहर गई। थोड़ी देर में मुझे सितार के तारों की-सी झंकार सुनाई देने लगी। मैंने सोचा कि कोई बजा रहा होगा। चारों ओर देखा। कोई नहीं।
दृष्टि – नज़र
जैसे ही लेखक की नज़र ओंस की बूंद पर पड़ी वह ठहर गई। थोड़ी देर में लेखक को सितार के तारों की तरह कुछ संगीत सा सुनाई देने लगा। लेखक ने सोचा कि कोई सितार बजा रहा होगा। उन्होंने चारों ओर देखा पर वहाँ कोई नहीं था जो सितार बजा रहा हो।
फिर अनुभव हुआ कि यह स्वर मेरी हथेली से निकल रहा है। ध्यान से देखने पर मालूम हुआ कि बूँद के दो कण हो गए हैं और वे दोनों हिल-हिलकर यह स्वर उत्पन्न कर रहे हैं मानो बोल रहे हों।
स्वर – आवाज
कण – बहुत छोटा अंश
लेखक को यह एहसास हुआ कि यह आवाज उन्हीं की हथेली से निकल रही है। ध्यान से देखने पर लेखक को मालूम हुआ कि जो उनकी हथेली पर एक बूँद गिरी थी अब वह दो हिस्से में बँट गई थी, और वे दोनों हिल-हिलकर ऐसी आवाज पैदा कर रही थी, ऐसा लग रहा था दोंनो बूँदे आपस में बातचीत कर रही हो।
उसी सुरीली आवाज़ में मैंने सुना- “सुनो, सुनो…’’ मैं चुप था।