Hindi, asked by satyamsatyamnn, 1 year ago

Pani Tere Roop Anek nibandh

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Answered by Naman7572
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जल और जीवन एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति के हर कोने में प्रत्येक जीव-जन्तु, वनस्पति में पानी अत्यावश्यक घटक है। पानी जीवन का आधार है। आलू में 80 प्रतिशत और टमाटर में 90 प्रतिशत पानी है। मानव शरीर में 70 फीसदी से अधिक पानी रहता है। जो साग, फल हम खाते हैं उसका भी बड़ा हिस्सा पानी है। यहाँ-वहाँ जहाँ देखो पानी-ही-पानी है लेकिन हर जगह रंग-रूप और अवस्थाएँ अलग हैं।

यदि पृथ्वी को बाहरी अन्तरिक्ष से देखे तो पाएँगे कि यह पानी के एक बड़े बुलबुले के समान है। इसका लगभग 70 फीसदी हिस्सा सागरों के कारण जलमय है। ध्रुव प्रदेश तथा पहाड़ों की चोटियाँ बर्फ अर्थात् पानी के ठोस रूप से ढंकी हैं। फिर असंख्य झीलें, ताल-तलैया, झरने, नदियाँ हैं। सम्पूर्ण भूमण्डल वायु की एक ऐसी चादर में लिपटा है जिसमें काफी कुछ वाष्पित जल है।

यदि इस पूरी वाष्प को द्रव में बदल दिया जाए तो पूरा भूमण्डल कई सेंटीमीटर गहरे पानी में डूब जाएगा। पानी अजेय है। इसका रूप बदलता रहता है। कभी भूमण्डल के किसी हिस्से पर बादल होते हैं और इससे पानी या बर्फ बरस जाती है। यह पानी या बर्फ ही नदियों, झरनों, कच्छ-भूमि को पानी से भरपूर रखते हैं।

पृथ्वी पर पानी तीन रूपों मे मिलता है - वाष्प यानि वायु में; द्रव, तो समुद्र, झील, नदियों में है और घनीभूत यानि हिम नदियाँ। जल की ये परिस्थितियाँ आपस में बदला करती है। द्रवीय जल गैसीय वाष्प के रूप में उड़ता है, वाष्प द्रवीय वर्षा मे परिवर्तित होती है। 

द्रवीय जल संघनीकृत बर्फ के रूप में पिघलता है। लेकिन किसी भी समय, पानी के इन रूपों की मात्रा कमोबेश एक समान रहती है। पृथ्वी पर पानी का लगभग 98 फीसदी द्रव के रूप में है, शेष भाग बर्फ और बहुत ही मामूली हिस्सा वायुमण्डल में वाष्प के रूप में विद्धमान है। धरती की जलकुण्डली सूर्य द्वारा संचालित होती है। इसके मुख्य तीन संघटक हैं-

1. समुद्र से जल का वाष्पीकरण
2. पृथ्वी और सागरों पर इसका बर्फ या वर्षा के रूप में पतन
3. नदियों के जरिए पानी का समुद्र को लौटना।

इस अपरिमित चक्र में कुछ छोटे घटना क्रम भी होते हैं। जैसे वर्षा के पानी का कुछ हिस्सा भूमि द्वारा सोखना, आदि।

भूमण्डल पर पानी का सबसे विशाल भण्डार है महासागर। सात से आठ किलोमीटर तक गहरे महासागरों के भीतर की जीव दुनिया अजीब व अद्भुत होती है। भूमण्डल का तीन चौथाई हिस्सा चार किलोमीटर गहरे पानी है। ढँका हुआ ही यह कोई आश्चर्य नहीं है कि पृथ्वी का 97.3 फीसदी पानी महासागरों और अन्तरदेशीय महासागरों में ही है। शेष 2.7 प्रतिशत पानी अण्टार्कटिक तथा आर्कटिक क्षेत्रो एवं पहाड़ी चोटियों पर जमा हुआ है। 

बर्फ के रूप में इतना पानी उपलब्ध है कि इससे संसार भर की नदियाँ एक हजार साल तक लबालब रह सकती हैं। बहुत थोड़ा पानी है जो धरती पर साधारण रूप में उपलब्ध है। लेकिन यह मात्रा भी कोई कम नहीं है। धरती पर एक लाख छत्तीस हजार घन किलोमीटर पेयजल उपलब्ध है, जिसमें से मात्र 14,000 घन किलोमीटर पानी ही उपयोग में आ पाता है।

समुद्री पानी खारा होता है। इसके एक लीटर पानी में लगभग 35 ग्राम नमक होता है। आप भी यही सोच रहे होंगे ना कि बरसाती पानी तो मीठा होता है, फिर समुद्री पानी खारा क्यों हो जाता है। जबकि समुद्र में पानी वर्षा से ही आता है। होता यह है कि बारिश का पानी जब जमीन पर गिरता है तो मिट्टी व चट्टानों में छुपे नमक के बारीक-बारीक कण इसमें घुल जाते हैं। यह हलका खारा पानी नदियों में बह जाता है। 

नदियों के पानी में खारापन इतना कम होता है कि चखने पर इसका एहसास नहीं होता है। इसके विपरीत हवा द्वारा समुद्रों से पृथ्वी ओर लाई गई वाष्प, वर्षा बनकर बरसती है। यह वाष्प विशुद्ध पानी होता है और इसमें नमक की शून्य मात्रा होती है। इस तरह नमक की रफ्तार धरती से समुद्र की तरफ एक तरफा होती है। कई करोड़ वर्षों से यह प्रक्रिया चल रही है, जिसके कारण समुद्र जल में खारापन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। यह प्रक्रिया आज भी जारी है।

महासागर धरती के लिए वरदान है। ये पृथ्वी के तापमान को अनुकूल बनाए रखने में शीतक की तरह भी कार्य करते हैं। वो पहेली तो आपने सुनी होगी ना- उड़ते हैं, पर पक्षी नहीं काले है, पर भील नहीं गरज बड़ी, पर सिंह कहे देते जल, पर झील नहीं। बूझ गए ना। हाँ, हम बादलों की बात कर रहे हैं। ये बादल भी तो पानी का ही रूप होते है। जब सूर्य देवता तपते हैं तो पृथ्वी पर स्थित जलस्रोतों समुद्र, नदियों, झीलों, मिट्टी, वनस्पति,सभी से पानी भाप बनकर उड़ता है। 

एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के अतिरिक्त हवा वातावरण में ऊपर से नीचे भी घूमती है। जब यह ऊपर की ओर जाती है, तब यह उच्च दबाव क्षेत्र से कम दबाव वाले क्षेत्र में जाती है। इस प्रकार हवा फैलती है। इसके लिए वह पहले से मौजूद हवा को हटाकर अपने लिए स्थान बनाती है। इस कार्य के लिए यह अपनी ही ताप-ऊर्जा का प्रयोग करती है और इस प्रकार अपने भीतर ठण्डापन लाती है।

यदि यह ठण्डक काफी बढ़ जाती है तब वाष्प धूल कणों के चारों ओर ही घनीभूत हो जाती है। ये धूल कण सदैव हवा के साथ-साथ ही होते हैं। इस प्रकार तैयार जलकण हवा में तैरते रहते हैं, जिन्हें हम बादल कहते हैं। एक मिलीमीटर अथवा इसी आकार की छोटी बूँद के लिए लाखों-करोड़ों जलकणों को एक होना पड़ता है। जब बूँद भारी हो जाती है तो उसका हवा में तैरना कठिन हो जाता है। ऐसे मेें वर्षा होने लगती है। 

कई बार हवा जमाव के तापमान तक सर्द हो जाती है। तब बर्फ कणों की बारिश होने लगती है, जिसे हम ‘हिमलव’ या आम बोलचाल की भाषा में ‘ओले गिरना’ कहते हैं। लोगों में धारणा रहती है कि बादल पहाड़ से टकराते हैं तो पानी बरसता है। लेकिन वास्तव में बरसात का किसी वस्तु से टकराने का कोई सम्बन्ध नहीं
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