History, asked by radhaprajapat807, 6 months ago

Paper Name
Que. 1 'गबन’ उपन्यास में मुंशी प्रेमचंद ने किन सामाजिक समस्याओं को
Que. 2 हिन्दी कथा साहित्य में प्रेमचंद के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
Que. 3 'पुरस्कार' कहानी प्रेम और कर्तव्य के वंद की कहानी हैं। इस कथ
Que. 4 'तीसरी कसम' कहानी की प्रमुख विषेशताएँ लिखिए।
Que. 5 अमरकांत की कहानियों की प्रमुख विषेशताएँ लिखिये।​

Answers

Answered by palaksrivastava824
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Answer:

1) इस उपन्यास में मध्यवर्ग की सामाजिक समस्याओं के अन्तर्गत दहेज-प्रथा, विधवा-समस्या, प्रेम-विवाह आदि का चित्रण हुआ है। चक्रधर प्रेम को एक शक्ति के रूप में मानता है उसके अनुसार प्रेम के द्वारा हर प्रकार की विपत्ति का सामना किया जा सकता है।

2) प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी शती के साहित्य का मार्गदर्शन किया। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक , सचेत नागरिक , कुशल वक्ता तथा सुधी संपादक थे

3) सच्चे नागरिक होने के कारण अरुण को पकड़वा देती है किंतु प्रेम के प्रति अपनी निष्ठा भी दिखाती है वह भी पुरस्कार रूप में प्राणदंड की मांग करती है यही कहानी की मूल संवेदना है यहां कर्तव्य एवं निष्ठा का निर्वाह किया गया है।

4) तीसरी कसम 1966 में बनी हिन्दी भाषा की नाट्य फिल्म है। फ़िल्म का निर्देशन बासु भट्टाचार्य ने और निर्माण प्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र ने किया था। यह हिन्दी लेखक फणीश्वर नाथ "रेणु" की प्रसिद्ध कहानी मारे गए ग़ुलफ़ाम पर आधारित है। इस फिल्म के मुख्य कलाकारों में राज कपूर और वहीदा रहमान शामिल हैं। बासु भट्टाचार्य द्वारा निर्देशित तीसरी कसम एक फिल्म गैर-परंपरागत है जो भारत की देहाती दुनिया और वहां के लोगों की सादगी को दिखाती है। यह पूरी फिल्म मध्यप्रदेश के बीना एवं ललितपुर के पास खिमलासा में फिल्मांकित की गई। इस फ़िल्म की असफलता के बाद शैलेन्द्र काफी निराश हो गए थे और उनका अगले ही साल निधन हो गया था।

यह हिन्दी के महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गये गुलफाम' पर आधारित है। इस फिल्म का फिल्मांकन सुब्रत मित्र ने किया है। पटकथा नबेन्दु घोष की है, जबकि संवाद स्वयं फणीश्वर नाथ "रेणु" ने लिखे हैं। फिल्म के गीत शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने लिखें, जबकि फिल्म का संगीत शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने दिया है। यह फ़िल्म उस समय व्यावसायिक रूप से सफ़ल नहीं रही थी, पर इसे आज अदाकारों के श्रेष्ठतम अभिनय तथा प्रवीण निर्देशन के लिए जाना जाता है। इस फ़िल्म के बॉक्स ऑफ़िस पर पिटने के कारण निर्माता गीतकार शैलेन्द्र का निधन हो गया था। इसको तत्काल बॉक्स ऑफ़िस पर सफलता नहीं मिली थी पर यह हिन्दी के श्रेष्ठतम फ़िल्मों में गिनी जाती है।

5) उनकी कहानियों में मध्यवर्गीय जीवन की पक्षधरता का चित्रण मिलता है। वे भाषा की सृजनात्मकता के प्रति सचेत थे। उन्होंने काशीनाथ सिंह से कहा था- "बाबू साब, आप लोग साहित्य में किस भाषा का प्रयोग कर रहे हैं? भाषा, साहित्य और समाज के प्रति आपका क्या कोई दायित्व नहीं? अगर आप लेखक कहलाए जाना चाहते हैं तो कृपा करके सृजनशील भाषा का ही प्रयोग करें।"[1] अपनी रचनाओं में अमरकांत व्यंग्य का खूब प्रयोग करते हैं। 'आत्म कथ्य' में वे लिखते हैं- " उन दिनों वह मच्छर रोड स्थित ' मच्छर भवन ' में रहता था। सड़क और मकान का यह नूतन और मौलिक नामकरण उसकी एक बहन की शादी के निमन्त्रण पत्र पर छपा था। कह नहीं कह सकता कि उसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन खुनिसिपैलिटी पर व्यंग्य करना था अथवा रिश्तेदारों को मच्छरदानी के साथ आने का निमंत्रण।"[3] उनकी कहानियों में उपमा के भी अनूठे प्रयोग मिलते हैं, जैसे, ' वह लंगर की तरह कूद पड़ता ', ' बहस में वह इस तरह भाग लेने लगा, जैसे भादों की अँधेरी रात में कुत्ते भौंकते हैं ', ' उसने कौए की भाँति सिर घुमाकर शंका से दोनों ओर देखा। आकाश एक स्वच्छ नीले तंबू की तरह तना था। लक्ष्मी का मुँह हमेशा एक कुल्हड़ की तरह फूला रहता है। ' ' दिलीप का प्यार फागुन के अंधड़ की तरह बह रहा था' आदि- आदि।[4]

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