परिच्छेद में आए गए विशेष लिखिए 4
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परिच्छेद संज्ञा पुं॰ [सं॰] १ काटकर विभक्त करने का भाव । कंड या टुकड़े करना । विभाजन ।
२. ग्रंथ या पुस्तक का ऐसा विभाग या खंड जिसमें प्रधान विषय के अंगभूत पर स्वतंत्र विषय का वर्णन या विवेचन होता है । ग्रंथ का कोई स्वतंत्र विभाग । ग्रंथविच्छेद । ग्रंथसंधि । अध्याय । जैसे,—अमुक पुस्तक में कुल १० परिच्छेद हैं । विशेष—ग्रंथ के विषय के अनुसार उसके विभागों नाम भी भिन्न भिन्न होते हैं । काव्य में प्रत्येक को सर्ग, कोष में वर्ग, अलंकार में परिच्छेद तथा उच्छ्वास, कथा में उदघात, पुराण और संहिता आदि में अध्याय, नाटक में अंक, तंत्र में पटल, ब्राह्मण में कांड, संगीत में प्रकरण और भाष्य में आह्निक कहते हैं । इसके अतिरिक्त पाद, तरंग, स्तवक, प्रपाठक, स्कंध, मंजरी, लहरी, शाखा आदि भी परिच्छेद के स्थानापन्न हुआ करते हैं । परिच्छेद का नाम विषय के अनुसार नहीं किंतु संख्या के अनुसार होता है; जैसे, नवाँ परिच्छेद, दसवाँ परिच्छेद ।
३. सीमा । इयत्ता । अवधि । हद । दो वस्तुओं को स्पष्ट रूप से अलग अलग कर देना । सीमानिर्धारण द्वारा दो वस्तुओं क ो बिलगाना । परिभाषा द्वारा दो या भावों का अतर स्पष्ट कर देना । जैसे, सत्यासत्य का परिच्छेद, धर्माधर्म का परिच्छेद ।
५. निर्णय । निश्चय । फैसला ।
६. विभाग । बँटवारा ।