पर गाणवलाख
tur
'नर समाज का भाग्य एक है, वह श्रम, वह भुजबल है।' जीवन की सफलता का मार्ग श्रम
है। अपने विचार व्यक्त कीजिए।
दीजिए।
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नर-समाज का भाग्य एक है, वह श्रम, वह भुजबल है, जिसके सम्मुख झुकी हुई- पृथ्वी, विनीत नभ-तल है। जिसने श्रम-जल दिया उसे पीछे मत रह जाने दो, विजीत प्रकृति से पहले उसको सुख पाने दो। जो कुछ न्यस्त प्रकृति में है, वह मनुज मात्र का धन है, धर्मराज उसके कण-कण का अधिकारी जन-जन है।।
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