Biology, asked by shaturahnkoshale, 6 months ago

परागकण की बाह्य चोल व अंतः चोल किससे बनी होती है एक परागकण का चित्र बनाकर उसमे निम्न भाग दरसाइए 1 बाह्य चोल 2 अंतः चोल

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Answered by sujal1247
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परागकण की संरचना | परागकणों का महत्व

Biology Notes For Class 12 in Hindi

परागकण गोला सूक्ष्मदर्शीय (25-50 um ) होता है इसकी भित्ति दो परतों की बनी होती है।

1. बाह्य चोल(External Chol):- यह परागकण की बाहरी परत होती है। यह डिजाईन युक्त उभार वाली होती है यह सर्वाधिक ज्ञात प्रतिरोधी कार्बनिक पदार्थ की बनी होती है। जिसे स्पोरोपोत्निन कहते है। इसका जैविक एवं रासायनिक अपघटन नहीं होता है इस पर उच्च ताप सुदृढ अम्लों, क्षारों की क्रिया नहीं होती है यह किसी भी ज्ञात एकजाइम द्वारा निम्बीकृत नहीं होता है। यही कारण है कि परागकण यही कारण है कि परागकण लम्बे समय तक जीवाश्म के रूप में संरक्षित रहते है। ब्राहय चोल में एक स्थान पर स्पोरोपोलेनिन नहीं पाया जाता है जिससे जननछिद्र कहते है।

2. अन्तः चोल:- यह परागकण की भीतरी परत है। यह सतत एवं अछिद्रित होती है इस पर कोई अक्षर व डिजाईन नहीं पाई जाती है। यह सेलुलोस व पैप्डिन की बनी होती है। अतः चोल के भीतर प्लाजमा झिल्ली से परिबद्ध (सिरा) कोशिका द्रव्य एवं केन्द्रक पाया जाता है।

परागकण में समसूत्री विभाजन होती है। इसमें दो कोशिकाएं बनती है।

1- कायिका कोशिका(Actin cell)

2- जनन कोशिका(Germ cell)

अधिकाशं 60 प्रतिशत आवृत बीजी पादपों में परागकण का इसी दो कोशिकीय अवस्था में ही स्फूटन होता है। शेष 40 प्रतिशत आवृत बीजी पादपों में जनन कोशिका दो नर युग्मक बनाती है इसप्रकार तीन कोशिकीय नर युग्मभेदभिद का निर्माण हाता है।

परागकणों का महत्व(Importance of pollen grains):-

1. आहार संपूरक:- परागकणों को टेबलेट एवं सिरप के रूप में धवक प्रश्नों तथा खिलाडियों द्वारा अपनी कार्यक्षमता में वृद्धि हेतु प्रयाग किया जाता है।

2. पराग एलर्जी:- कुछ पादपों के परागकण एलर्जी एवं श्वसनी विकार (घना श्वसनी शेध ) उत्पन्न करते है जैसे:- पार्थोनिगम (बाजरधातु)

परागकणों की जीवन क्षमता (अंकुरण क्षमता):- परागकणों की जीवन क्षमता दो कारकों पर निर्भर करती है।

1- तापमान

2- आर्द्धता

परागकण कुछ घण्टे (गेहू, धान में 1 घण्टा) से 6 लेकर कुछ महीने (साॅलेनेसी, रोजेसी, लेग्यूमिनेसी (मटर) 6 साल अंकुरण क्षमता रखते है।

परागकणों को द्रव नाइट्रोजन 1920 डिग्री सेंटीग्रेट पर अण्डारीत करके पराग बैंक के रूप में फसल प्रजनन में प्रयोग करते है।

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