परीक्षा का भय पर हिंदी निबध
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(निबंध)
परीक्षा का भय
परीक्षा का भय एक ऐसा एहसास है जो सभी विद्यार्थियों को होता है। अगर सभी विद्यार्थियों को नहीं भी होता हो तो यह ज्यादातर विद्यार्थियों को तो होता ही है। पर ऐसा क्यों होता है इसका कारण स्वयं विद्यार्थियों को मालूम होना चाहिए। अक्सर ऐसा होता है कि विद्यार्थी साल भर उस श्रम और लगन से पढ़ाई नहीं करते हैं, जिस श्रम और लगन से समय का सदुपयोग करके पढ़ाई करनी चाहिए और परीक्षा नजदीक आते ही एकदम से पढ़ने में जुट जाते हैं।
आप 5 दिन बिल्कुल भी खाना नहीं खायें तो भी पांचवें दिन एक साथ 5 दिन का खाना नहीं खा पाएंगे। उसी प्रकार आप साल भर की पढ़ाई एक दो महीने में ही करना चाहे तो वह संभव नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में विद्यार्थी पर दवाब बनता है, और दबाव के कारण तनाव उत्पन्न होता है, ये तनाव ही भय का कारण बनता है।
जो छात्र मेधावी और परिश्रमी होते हैं वो पूरे वर्ष पर निरंतर पढ़ाई करते रहते हैं उनके मन में परीक्षा के समय भय नहीं होता है, क्योंकि उन्होंने अपनी पढ़ाई भली-भांति की है और परीक्षा की तैयारी अच्छे से की है।
परीक्षाएं केवल इसलिए ली जाती है ताकि विद्यार्थी ने जो कुछ भी सीखा है उसकी परख हो सके, उसका आकलन किया जा सके कि उसने कितना कुछ सीखा है। लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था में कुछ खामियां हैं और इस शिक्षा व्यवस्था ने शिक्षा को परीक्षा केंद्रित बना दिया है। जहां सारा फोकस केवल परीक्षा में अच्छे अंक लाना है। शिक्षा को अपने अंदर तक आत्मसात करना नहीं। इसी कारण विद्यार्थी का मन बस केवल परीक्षा में ही लगा रहता है और शिक्षा द्वार ज्ञान हासिल करने के मूल तत्व से वह भटक जाता है। हर समय ध्यान परीक्षा केंद्रित होने के कारण उसके मन में परीक्षा के प्रति भय उत्पन्न हो जाता है। परीक्षा के भय का एक कारण यह भी है।
परीक्षा के भय के निवारण के लिए शिक्षा व्यवस्था में सुधार होना चाहिए और परीक्षा को एक सहज प्रवृत्ति के रूप में विकसित करना चाहिए ना कि एक हौआ के रूप में। विद्यार्थियों को भी पढ़ाई में पूरे साल निरंतरता रखनी चाहिये न कि ये कि परीक्षा के दिनों में पढ़ाई ज्यादा की और साल भर लापरवाही से पढ़ाई की।
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