परिणय-समय मण्डप-तने सम्बन्ध दृढ़ता-हित अहा
!
ध्रुव देखने को वचन मुझसे नाथ ! तुमने था कहा
पर दिपुल बीड़ा-वश न उसको देखना मैं कह सकी,
संगति हमारी क्या इसी से ध्रुवन हा! हा! रह सकी?
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