परिप्रेक्ष्य समाजशास्त्र
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प्रस्तुत पुस्तक समाजशास्त्र की महत्वपूर्ण अवधारणाओं को समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने का एक लघु किन्तु परिश्रमसाध्य प्रयास है। कुल उन्नीस अध्यायों में समूह, प्रस्थिति, समाजीकरण, स्तरीकरण, सामाजिक परिवर्तन तथा महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाओं, यथा, विवाह, धर्म, राज्य, अर्थव्यवस्था, शिक्षा आदि की मूलभूत अवधारणाओं का समावेश है। क्लिष्ट सिद्धान्तों एवं संबंधों की व्याख्या, वर्णन-विश्लेषण बहुत ही सरल भाषा में रेखाचित्रों व उदाहरणों के साथ किया गया है। पुस्तक के विषयवस्तु की प्रमाणिकता हेतु मूल लेखकों के यथासंभव संदर्भ और विषय की स्पष्ट अभिव्यक्ति एक विशिष्ट विशेषता है। पुस्तक समाजशास्त्र के उच्च कक्षाओं के विद्यार्थियों, विषय में रुचि रखने वाले सामान्य जिज्ञासुओं, एवं विभिन्न राज्य एवं केन्द्रीय प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रवेशार्थियों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। हिन्दी भाषा में स्तरीय सामग्री का जो अभाव है, यह पुस्तक उस रिक्ति को पूरा करने का एक विनम्र प्रयास है।