"परोपकार की भावना लोककल्याण की भावना से पूर्ण होती है। " कथन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए स्पस्ट करे कि हमे परोपकार से भरा जीवन क्यों जीना चाहिए ।
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परोपकार की भावना लोक-कल्याण की भावना होती है
‘परोपकार’ का अर्थ है दूसरों पर उपकार। दूसरों पर उपकार का तात्पर्य दूसरों की भलाई के लिये कार्य करना। इस भलाई के कार्य में अपना कोई निजी स्वार्थ नही हो। ये करुणा दया, ममता और स्नेह से परिपूर्ण भावना होती है।
यदि हम प्रकृति में चारों तरफ देखें तो पायेंगे कि प्रकृति परोपकार का सबसे अच्छा उदाहरण है। वृक्ष अपने फल स्वयं नही खाते हैं। नदी अपना जल स्वयं नही पीती है। सूर्य अनवरत हमें ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करता है। खेत हमें अन्न देते हैं। वायु हमें ऑक्सीजन प्रदान करती है।
परोपकार एक अत्यन्त सुखद अहसास है। अपने लिये तो सभी जीते हैं पर सच्चा सुख किसी दूसरे लिये काम आने में है। संसार में वो कार्य सबसे श्रेष्ठ है जिससे किसी दूसरे का भला हुआ हो। किसी चेहरे मुस्कान लाना और किसी के जीवन में खुशी लाना प्रभु की सच्ची आराधना के समान है। कहते हैं नर में ही नारायण बसते हैं अर्थात प्रत्येक मनुष्य में ही ईश्वर व्याप्त है तो क्यों न किसी दुखी की, किसी जरूरत मंद की, किसी परेशान व्यक्ति की मदद कर साक्षात ईश्वर की इबादत करने जैसा महसूस करें।
आज हमारे चारों हिंसा, नफरत, स्वार्थ, असहनशीलता आदि व्याप्त है। हर कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ में लिप्त है। ऐसे में परोपकार की भावना इस समाज के लिये नितांत आवश्यक ताकि लोग स्वार्थी प्रवृत्ति से ऊपर उठकर एक-दूसरे का सहयोग करें, एक-दूसरे का दुःख-दर्द समझें, तब ही एक अच्छे समाज का निर्माण होगा। जिसमें दया व प्रेम की भावना हो।
हर धर्म में परोपकार को विशेष महत्व दिया गया है। जो अपने पूरे जीवन में किसी भी व्यक्ति के काम नही आया हो, जिसने कभी कोई परोपकार का कार्य नही किया हो वो व्यक्ति मानव कहलाने का अधिकारी नही है।
परोपकार करने के लिये किसी आयु या योग्यता की जरूरत नही पड़ती। परोपकार के लिये बस संवेदनशील होना आवश्यक है। बड़े दिलवाला होना आवश्यक है।
संसार में जितने भी महापुरुष हुये हैं उन्होंने अपना जीवन सदैव दूसरों की भलाई के लिये लगा दिया। अगर उन्होंने दूसरों की भलाई के कार्य नही किये होते और केवल अपने स्वार्थ के लिये जिये होते तो वे महापुरुष नही बन पाते और ना ही हम उन्हें याद करते।
अतः परोरपकार की भावना लोककल्याण की भावना से ही पूर्ण होती है और प्रत्येक व्यक्ति को लिये परोपकारी होना अति आवश्यक है।
ईश्वर ने मानव को विशेष गुण दिया है वो है बुद्धि और संवेदनशीलता। ये गुण मानवजाति को संसार के अन्य प्राणियों से अलग करता है। वरना केवल अपने स्वार्थ के लिये जीना तो पशुओं का काम है।
जो लोग दूसरों के लिये जीतें है, परोपकारी हैं वो लोग ही सच्चे मानव हैं।
Answer:
upper answer is correct but has some error. ☄️️️️️️️☄️