परोपकार का महत्व बताते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए
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परीक्षा भवन
अ ब स
जयपुर
दिनांक 18 फरवरी, 2019
प्रिय क ख ग,
सादर प्रणाम।
मेरा यह पत्र पाकर तुम्हें आश्चर्य हो सकता है कि लम्बे अन्तराल के बाद आज अचानक मुझे आपकी याद क्यों आई । मैं भी तुम्हारी तरह पत्र लिखने में आलसी हूं। जब तक कोई आवश्यक बात न हों तब तक शायद हम दोनों पत्र नहीं लिखते है।
मेरे विद्यालय में परोपकार विषय पर एक भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। मैने उसमें भाग लिया। मुझे कई लोगो के विचार सुनने को मिलें। मैं इसे आपके साथ जरुर शेयर करना चाहूंगा।
बिना किसी स्वार्थ से किसी भी जरुरतमंद की सहायता करना परोपकार है। परोपकार का जिन्दगी में बड़ा महत्व है। यह जीवन का पानी का बुलबुला है। एक निश्चित समय के बाद इसका अन्त निश्चित है तो क्यों न हम अपनी जिन्दगी परोपकार में लगाये। मृत्यु के बाद भी यदि किसी व्यक्ति की कीर्ति रहती है तो इसमें मुख्य योगदान उसके परोपकार के कार्य है।
मदर टेरेसा इसका ज्वलंत उदाहरण है। जिन्होने परोपकार में अपनी जिन्दगी लगा दी और यश प्राप्त किया। भारत के महान ऋषियों और मनीषियों ने अपना जीवन परोपकार में व्यतीत किया। इसलिये हम उन्हें आज भी याद करते है। इसलिये मैं मानता हूं कि मनुष्यता की पहचान परोपकार हैं।
आशा करता हूं कि आप मेरे विचारों से सहमत होगे। पत्र के जवाब की प्रतीक्षा में हूं।चाचाजी और चाचीजी को मेरा चरण स्पर्श करना। और छोटू को मेरा प्यार कहना।
शीघ्र पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में।
आपका शुभेच्छु
अ ब स
परोपकार का महत्व बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए |
20, मालरोड,
शिमला I
दिनांक 29.10.2018
प्रिय मित्र सुरेश,
सप्रेम नमस्ते I
आपका पिछले पत्र मिला जिसमें आपने अपनी संपूर्ण दिनचर्या का वर्णन किया था। प्रिय मित्र मैं आपको बताना चाहता हूं कि हमें अपने दैनिक कार्यों के साथ-साथ परोपकार के कार्य भी करते रहना चाहिए इससे हमारे मन को बड़ा सुकून मिलता है और दूसरों की मदद भी हो जाती है। मुश्किल घड़ी में फंसे दूसरों की सहायता करना ही परोपकार कहलाता है। हमारे शास्त्रों में भी परोपकार का वर्णन किया गया है। परोपकार के लिए ही पेड़ों पर फल आते हैं परोपकार के लिए ही नदियों का जल होता है अर्थात यह सारा काम दूसरों के लिए करते हैं उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति भी परोपकार के लिए ही धन का संचय करते हैं और मुसीबत में फंसे व्यक्ति की सहायता करते हैं।
यदि मनुष्य के जीवन में कोई सार है तो वह परहित ही है। जो मनुष्य केवल अच्छा खाना अच्छा वस्त्र पहनना ही जीवन का लक्ष्य समझता है उसमें और पशु में फिर क्या अंतर है? मानव जीवन के सफलता इसी में है कि हम जहां अपने लिए जिएँ वहां परहित का भी ध्यान रखें।
पूज्य मातापिता जी को चरण-बंदना कहना I
आपका प्रिय मित्र,
आर्यन ठाकुर