Sociology, asked by avchaitanya20, 27 days ago

परोपकार करते समय कष्ट सहना ही पड़ता है, परंतुइसमें परोपकारी को आत्मसंतोष और सुख ममलता है|

मााँन उठाए तो का कल्याण नहीं होगा| वक्षृ परुानी पत्तों का मोह त्यागे नहीं, तो नव-पल्लवों के दर्शन

असंभव है| पपता ददनभर कष्ट सहकर धन अर्जशत न करे, तो पररवार का पोषण कै से होगा? पक्षी कष्ट

सहकर भी अपने मर्र्ुओं के मलए आहार इकट्ठा न करें तो उसके बच्चे बचेंगे कै से? माता-पपता, वक्षृ ,

पक्षक्षयों का कष्ट, कष्ट नहीं| कारण, वे परदहत के मलए पीडड़त हैं| अतः उस पीड़ा को भी वे आनंद मानते

हैं| परोपकार करने से आत्मा प्रसन्न होती है| परोपकारी दसू रों की सहानुभूतत का पात्र बनता है| समाज के

दीन-हीन एवं पीडड़त वगश को जीवन का अवसर देकर समाज में सम्मान प्राप्त करता है| समाज के

पवमभन्न वगों में र्त्रुता, कटुता और वैमनस्य दरू कर र्ांतत दतू बनता है| धमश के पथ पर समाज को प्रवतृ

का ‘मुर्ततदाता’ कहलाता है| राष्रगीत का ध्यान रखने वाला तथा जनता में देर् की भर्तत की चचंगारी

फूाँकने वाला ‘देर्-रत्न’ की उपाचध से अलंकृत होता है|

1. माता-पपता, वक्षृ और पक्षी ककस पीड़ा को आनंददायी मानते हैं?


2. परोपकार करने वाले को तया-तया लाभ ममलता है?

3. इस गदयांर् के मलए उपयुतत उपयुतत र्ीषशक मलखखए?


4. परोपकारी को कष्ट के साथ-साथ कौन सा सखु प्राप्त होता है?


5. मुर्ततदाता कौन कहलाता है?
6. ‘देर् रत्न’ की उपाचध ककस को अलंकृत करती है?

Answers

Answered by sarika001276
0

Answer:

हम प्रत्येक जो किसी संस्कृति या निश्चित समूह से संबंध रखते हैं दूसरे समुदाय/संस्कृति से सांस्कृतिक गुणों को ले सकते हैं, लेकिन हमारा जुड़ाव, भारतीय सांस्कृतिक विरासत के साथ नहीं बदलेगा।

Similar questions