परोपकार और सामाजिक विकास (स्वमत)
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कुशीनगर : समाज में परोपकार करने वाले व्यक्ति की ही पहचान होती है। निश्वार्थ
भाव से दूसरों के हित के लिए तत्पर रहने वालों का यश दूर-दूर तक फैलता है। पीडि़त को संकट से उबारना नेक
कार्य है। उदास चेहरों पर खुशी लाना सबसे बड़ा धर्म है। किए गए उपकार के बदले अपेक्षा का भाव रखना उपकार
की श्रेणी में नहीं आता। ये बातें गीता इंटरनेशनल स्कूल में आयोजित संस्कारशाला गोष्ठी में प्रधानाचार्य संजय श्रीवास्तव ने कही। कहा कि असहायों, गरीबों, दीन-दुखियों, पीडि़तों, जरुरतमंदों की निश्वार्थ भाव से सेवा व सहयोग करना परोपकार है। स्कूली बच्चों को इससे सीख लेकर अपने जीवन में उतारना चाहिए। दूसरों के उदास चेहरों पर
खुशी लौटाकर जो आनंद मिलता है उसकी प्राप्ति के लिए इंसान यहां-वहां भटक रहा है। परोपकार में ही समाज
की भलाई है। इसके लिए भेदभाव भुलाकर हम सभी को कदम बढ़ाना होगा। प्रधानाचार्य ने परोपकार के अनेक
उदाहरण देकर बच्चों को परोपकारी बनने की सीख दी। इस दौरान स्कूली छात्र-छात्राओं ने अनेक सवाल भी
किए जिससे तर्कसंगत ढंग से बताया । कहा कि भगवान ने मनुष्य को ज्ञान, बुद्धि, विवेक, परख की क्षमता दिया
है इसका उपयोग स्वयं के साथ ही समाज हित के लिए भी करना चाहिए।
रौनित कहते हैं व्यक्ति को परोपकारी बनना चाहिए। परोपकारी व्यक्ति की सर्वत्र पूजा होती है। इसके लिए
न तो कोई आयु निश्चित हैं न ही तय कक्षाएं। कहते हैं परोपकारी बनने के लिए उदारता पहली शर्त है। इसकी
पहल स्वयं करनी होगी।
अदिति द्विवेदी कहती हैं परोपकार से सामाजिक बदलाव आता है। एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना पनपती
है। छोटी-छोटी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं। अपने आसपास के लोगों की मदद कर, उन्हें संकट से उबार
कर हमें अच्छे व नेक इंसान बन सकते हैं।
अरहया लारी ने कहा कि उपकार की भावना अच्छे माहौल से ही पनपती है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहकर एक दूसरे का सहयोग करना, संकट की घड़ी में दूसरों के काम आना परोपकार है। आसपास की
परिस्थितियों से अवगत होकर हमें कदम बढ़ाना होगा।
आयुषी तिवारी ने कहा समाज में बिना सहयोग के किसी का कार्य पूरा नही होता। घर, स्कूल, गांव, मोहल्ला में
एक दूसरे के कार्य में सहभागी बनकर उपकार करने से जहां सामाजिक ताना-बाना मजबूत होता है वहीं परोपकारी
भाव का विकास होता है। हर वर्ग के लोगों को इसके लिए पहल करना होगा।
अनुभव रंजन ने कहा कि क्लास के कमजोर बच्चों का सहयोग करके हम नेक कार्य कर सकते हैं। गरीबों का
आर्थिक व सामाजिक सहयोग कर मदद किया जा सकता है। इसकी शुरुआत हर किसी को संकल्पित होकर करना
होगा। तभी समाज में बदलाव दिखेगा।
अनुज तिवारी कहते हैं परोपकारी व्यक्ति की ही समाज में पहचान कायम होती है। यश व कीर्ति परोपकारी बनने
से ही फैलती है। युवाओं को परोपकारी बनने की पहल घर व स्कूल से ही शुरू करनी चाहिए। परोपकारी की राह
में कदम बढा़ने का संकल्प हर युवा को लेना होगा।
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