परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं पर अनुच्छेद
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परहित सरिस धरम नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधमाई। ' तुलसीदास की इन पंक्तियों में मानव धर्म का निचोड़ समाया हुआ है। प्रकृति ने मानव को सोचने समझने की शक्ति के साथ-साथ दया, प्रेम व करुणा जैसी संवेदनशील भावनाएं भी दी हैं। ये भावनाएं ही मानव में परोपकार भाव का संचार करती हैं।
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- परोपकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म
- परोपकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म5 वर्ष पहल
- मनुष्य को अपने जीवन में सबकी मदद करनी चाहिए। परोपकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म होता है। जीव, जंतु आदि को पीड़ा देना सबसे बड़ा अधर्म होता है। कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए। सत्य ईश्वर का प्रतीक होता है व झूठ अधर्म का प्रतीक। उक्त बातें महाराणा प्रताप चौक स्थित सामुदायिक भवन में स्व. लक्ष्मीकांत देशपांडे की स्मृति में आयोजित श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ में अयोध्या से आए पं. नरेंद्र रामदास ने कहा।
- कथा में उन्होंने शुक्रवार को कपिल भगवान के अवतार और ध्रुव चरित्र के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि ध्रुव जी की सौतेली माता कहा कि जब तक आप मेरे गर्भ से उत्पन्न नहीं होंगे, तब तक आप अपने पिता की गोद में बैठने योग्य नहीं होंगे। नारद के सदुपदेश के बाद ध्रुव भगवान की तपस्या करने बैठ गए। 5 महीने कठिन तपस्या के बाद छठवें महीने में ध्रुव को भगवान ने दर्शन दिया। इसके बाद भगवान ने संघ का स्पर्श ध्रुव के गाल पर किया। भगवान के स्पर्श मात्र से ही ध्रुव को वेद-वेदांत का ज्ञान हो गया
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