परंपरागत डाकुरानी कौन है? ` class 10
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परम्परा और आधुनिकता के बीच चुनाव का द्वंद्व हमारे वक्त की पहचान है। छद्म आधुनिकता और छद्म धार्मिकता के चलते अनियंत्रित भोग के लिए पैसे कमाने को ही हमने जीवन का सर्वोच्च मूल्य मान लिया है। हमें ऐसी संतुलित दृष्टि चाहिए जो अतिशय वैराग्य और अनियंत्रित भोग के बीच मार्ग बताए।
हमारा समाज संक्रमण के जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें हम परम्परा और आधुनिकता के बीच चुनाव के द्वंद्व में फंसे हैं। एक ओर पश्चिमी जीवनशैली का सम्मोहन है तो दूसरी ओर सांस्कृतिक अस्मिता का आग्रह है। अनिश्चय और अनिर्णय कई बार हमसे ऐसे आधारहीन, अवसरवादी, हास्यास्पद और सिद्धांतहीन समझौते करवाते हैं कि लगता है जैसे हमारा विवेक खो गया है। महिलाओं और दलितों के संदर्भ में तो यह सच है ही किंतु प्रेम और विवाह के मामले में भी हमारा रुख विसंगतियों भरा है।
वास्तव में हमारी परम्परा क्या है? किस ढंग की आधुनिकता से हमारा सामना हो रहा है? क्या इनके बीच समन्वय के सूत्र खोजे जा सकते हैं या आधुनिक होने के लिए हमें परम्परा से पूर्ण विच्छेद ही करना होगा? परम्परा को अपरिवर्तनशील मानना सबसे बड़ी भ्रांति है। इसमें आंतरिक गतिशीलता होती है, नए संदर्भ उसे नए अर्थ देते हैं। ये स्वनिर्मित नहीं होतीं, उनका सचेत रूप से चुनाव किया जाता है। यह विवेक और सच्ची इतिहास दृष्टि द्वारा ही संभव है। इस दृष्टि से देखें तो भारतीय परम्परा का मूल स्वरूप तय करना कठिन है, क्योंकि भारतीय समाज बहुधर्मी, बहुजातीय और सांस्कृतिक बहुलता वाला समाज रहा है। केवल वेद, पुराण और शास्त्रों से उसकी तस्वीर नहीं बनती क्योंकि बौद्ध, जैन, इस्लाम व ईसाई परम्पराओं का भी इसमें योगदान है।
Answer:
तृष्णा
Explanation:
parpardak dakurani trishna