परंपरा
टोपियों का सौदागर टोपियाँ बेचने दूसरा गाँव जा रहा था। रास्ते में आराम करने एक पेड़ के नीचे रुक गया। हवा के झोंके से आँख लग गई। कुछ देर में उठा तो देखा, टोपियाँ गायब। घबरा गया। सोचने लगा- 'चोर ले गए होंगे।' तभी ऊपर से आवाज़ आई। देखा, बंदरों का झुंड पेड़ पर उसकी टोपियाँ लगाए बैठा है। उसने काफी कोशिश की कि बंदर टोपियाँ लौटा दें। पर सब बेकार। गुस्से में झुंझलाकर उसने अपने सिर की टोपी ज़मीन पर पटक दी। नकलची बंदरों ने भी वैसा किया। सौदागर टोपियाँ समेटकर अपने रास्ते चल पड़ा।
पचास साल बाद उसका पोता, जो खानदानी धंधे में था, टोपियाँ लेकर वहाँ से गुज़रा। पेड़ अब ज्यादा घना, छायादार हो गया था। पोता भी वहीं रुका। हवा चल रही थी। उसकी भी आँख लग गई। नींद खुली तो देखा, टोपियाँ गायब |
पोते को दादाजी का किस्सा याद आया। सीधे ऊपर देखा। बंदर टोपियाँ लगाए बैठे q_{1} 'अभी वापस लेता हूँ' उसने सोचा और अपने सिर की टोपी ज़मीन पर पटक दी। बंदरों पर कोई असर नहीं हुआ। एक बंदर बोला, “तुम क्या समझते हो, दादाजी से सीख तुमने ही ली है? हमारे दादे-परदादे हमें कुछ नहीं सिखा गए ?"
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