परंपरा तथा आधुनिकता
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परंपरा और आधुनिकता परस्पर विपरीत प्रदर्शित होते हैं पर ये भिन्न होते हुए भी पृथक नहीं है। वे 'एक-दूसरे के पूरक जरूर हैं और एक-दूसरे को पर्याप्त प्रभावित भी करते हैं। परंपरा जहॉं किसी समाज या देश को समृद्ध बनाती है, वहीं आधुनिकता उसे गतिशीलता प्रदान करती है। आधुनिकता हमें पर देती है, उडऩे को, तो परंपरा हमें जमीन से जोड़े रखती है। इस प्रकार परंपरा और आधुनिकता में सामंजस्य अतीत के गौरव को बनाए रखने के साथ-साथ समाज को उन्नति व समृद्धि की ओर अग्रसर करता है।
परंपरा - परम्+अपरा = परंपरा पूर्व और ऊपर
चलति एकेन पादेन, तिष्ठति एके बुद्विमान - हजारी प्रसाद द्विवेदी
अर्थात् बुद्विमान वह होता है, जो एक पॉंव से खड़ा रहता है और एक पॉंव से चलता है। यही बात मनुष्य, समाज और उसके विकास के साथ लागू होती है। परंपरा अर्थात् जो काल के दौरान एक-से दूसरे हाथों से होती हुई आज तक चली आई है। परंपरा की रचना मनुष्य, समाज, जाति के इतिहास से होती है, उसके अतीत से होती है। परंपरा एक श्रृंखला है, कल को आज से जोडऩे वाली श्रृंखला। बदलते परिवेश और नई आवश्यकताओं के दबाव के कारण परंपराएॅं अपना अनुकूलन करती हैं। कुछ त्यागे जाते हैं, जो अनुपयोगी हो चुके हैं और कुछ अपनाए जाते हैं, जिसका कारण नई संस्कृतियों के साथ अंतक्रिया होता है।
किसी देश, समाज के साहित्य के निर्माण में उसके परंपरा का बहुत योगदान होता है, क्योंकी वह परंपरा के द्वारा अपने अतीत के सैकड़ों या हजारों वर्षों की वह संपदा परंपरा से प्राप्त करता है। जिसकी जितनी समृद्ध परंपरा होती वह जाति, समाज, प्रदेश उतना ही अंदर से समृद्ध परंपरा होगा। उदाहरणत: अमेरिका का इतिहास केवल 400 वर्ष पुराना है इसलिए उनके पास परंपरा के नाम पर अपना ज्यादा कुछ नहीं है वह ज्यादा से ज्यादा ब्रिटेन से जोड़ सकते हैं जबकि भारत, चीन, मिश्र आदि के पास परंपरा का समृद्ध संसार है। इस तरह परंपरा अतीत का वह रचनात्मक हिस्सा है, जो सदियों की यात्रा में हम तक पहॅुचा है, जिसका हमारे साथ होना हमें समृद्ध बनाता है।
पूरा इतिहास, पूरा अतीत ही परंपरा नहीं होती है, क्योंकी वह बहुत व्यापक होती है, सारा कुछ को एक साथ नहीं संभाला जा सकता इसलिए हमें कुछ को छोड़ कर महत्वपूणज़् को ही संभालना पड़ता है। परंपरा और रूढि़ में बारिक अंतर है। जब परंपरा में अंतरनिहित आयाम खो जाता है, तब वह रूढि़ में बन जाती है। इसी तरह जाने-अनजाने जब समाज आत्मकेन्द्रित व्याख्या से रूढि़ को विधान बना लेता है, तब वह रूढि़ होने पर भी परंपरा की तरह ढोई जाती है। रूढि़ परंपरा का जड़ अंग है। उदाहरण स्वरूप जाति-प्रथा प्रारंभ में श्रम का विभाजन व व्यवसाय से था, न कि ऊॅंच-नीच से था। कालांतर में जब काम छोटे और बड़े समझे जाने लगे, तब ऊॅंच-नीच की भावना आती चजी गई और जाति की व्यवस्था रूढि़ बन गई। परंपराएॅं अतीत को वतज़्मान और वतज़्मान को भविष्य से जोड़ती है। मनुष्य के अस्तित्व की व्याप्ति जहॉं तक है, वहॉं तक उसे परंपरा प्रभावित करते हैं।
आधुनिकता - संस्कृत का अधुना शब्द की आगे चलकर आधुनिकता में बदल गया है। आधुनिकता का अर्थ है समकालीनता। यह वर्तमान के झरोखे से अतीत को निहारने और भविष्य को संवारने का विवकेशील रवैया है। आधुनिकता एक सापेक्ष अवधारणा है। पुराने की तुलना में जब व्यापक रूप से कुछ नया आता हुआ बदलाव लाता है, तो पुराने की तुलना में वह आधुनिक होता है। उदाहरणत: प्रस्तर-युग के बाद जब लौह-युग आया होगा, जब कृषि -सभ्यता का विकास हुआ होगा, तब वह अपने पूर्व की तुलना में विकसित, नया ओर क्रांतिकारी स्वरूप के कारण आधुनिक था किंतु यह जरूरी नहीं कि केवल काल-भेद से ही कोई आधुनिक या पुरातन समझा जाए। कालिदास ने कहा है कि- पुरानम् इत्येव न साधु सर्वम, नवीनम् अपि एव न अन्यथा अर्थात् पुराना सब कुछ अच्छा हो तथा नया सब कुछ बुरा हो यह आवश्यक नहीं। उदाहरणत: मनुष्यता और समाज के प्रति कबीर का दृष्टिकोण तब भी आधुनिक था और अब भी आधुनिकतम् है, जबकि काल की दृष्टि से आधुनिक कहे जाने पर भी आज घोर पुरातन-पंथी और प्रतिगामी प्रवृत्तियॉं और सोच आज के युग में हमें दिखाई पड़ सकती है।