पर सोना पन्ना से अपन
व्याख्या-धाय माँ! भाग्य तो हर मनुष्य का होता है। हर वस्तु हर इंसान का :
उसी तरह मेरे पैरों में बंधे घुघरूओं का भी यही भाग्य है कि मेरे पैर नृत्य की गति
उनके साथ-साथ गायें तथा मेरे कहीं पहुँचने से पहले ही ये छनक-छनक कर में
सूचना दे देवें। लेकिन तब मेरे पैर रूक जाते हैं, तो ये भी आवाज करना बन्द कर
इनका भाग्य ही है। धाय माँ इसी प्रकार सभी का अपना-अपना भाग्य होता है। त
दीपदान उत्सव में भाग न लेना तथा बनवीर का साथ न देना तुम्हारी इच्छा पर नि
तुम
चाहो तो इनका साथ दो या न दो। मेरा कोई हक नहीं बनता है कि मैं बीच में
इसके लिए राजी करूँ।
(2) “ओह पन्ना! तूने अपने भोले बच्चे के साथ कपट किया है,
.....सर्पिणी जो अपने बच्चों को खा जाती है।"
प्रसंग-इन पंक्तियों में पन्ना चंदन की मृत्यु की जिम्मेदारी स्वयं पर आती देख
निश्चित समझकर मनस्ताप प्रकट कर रही है।
व्याख्या-पन्ना स्वयं के प्रति ग्लानि का अनुभव करते हुए कहती है कि हे
कर्तव्य की बलि वेदी पर अपने पुत्र को चढ़ा कर अपने भोले मासूम बच्चे के सा
है जबकि उसका कोई अपराध नहीं था, तूने उसे मौत का ऐसा उपहार दिया है म
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