"परेशान हुं इन विज्ञापनो से" विषय पर हिंदी निबंध।
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आज का युग विज्ञापन का युग है । जब से उपभोक्ता संस्कृति का प्रचार और प्रसार हुआ है तब से विज्ञापनों की भरमार सी आ गई है । आज प्रतियोगिता का समय है ।
बाजार में अत्याधिक संकुचन है । इसलिए प्रत्येक उत्पादक कम से कम दाम लगाकर अधिक से अधिक लाभ अर्जित करना चाहता है । अपनी वस्तु की बिक्री के बढ़ाने और अधिक लाभ कमाने के लिए व्यापारी विज्ञापनों का सहारा लेते हैं ।
विज्ञापन समाचार-पत्रों के द्वारा, पत्रिकाओं के माध्यम से, रेडियों और दूरदर्शन के माध्यम से, हैंड बिल छपवाकर दीवारों पर अवाकर और उद्घोषक के द्वारा घोषणा कराकर दिए जाते हैं । कई बार एक कम्पनी अपने प्रचार के लिए कई-कई माध्यमों का सहारा लेती है ।
कवि सम्मेलनों, दोवाली मेलों और अन्य कई प्रकार के कार्यक्रमों के विज्ञापन भी देखे जा सकत हैं । विज्ञापनों की भाषा बड़ी आकर्षक और लच्छेदार होती है । वस्त्र आदि का विज्ञापन करते समय नाना प्रकार की सुंदरियों को उपयोग में लाया जाता है ।
परिधान व्यवसाय में तो विज्ञापन सुंदरियों के सहारे ही आगे बढ़ते हैं । विज्ञापन दाता विश्व सुंदरियों, अभिनेत्रियों, अभिनेताओं और खिलाड़ियों का उपयोग करते हैं । वे उन्हें इसके लिए अच्छी खासी राशि देते हैं । कभी-कभी विज्ञापन दाता व्यक्तियों की धार्मिक भावनाओं का भी पूरा-पूरा लाभ उठाते हैं ।
दशहरे और दीपावली के अवसर पर मिठाई बनाने वाले अपनी ख्याति का पूरा-पूरा लाभ उठाते हैं । विज्ञापन की बदौलत ही चालीस रुपये किलों की मिठाई अस्सी और सौ रुपये किलो बिकती है । कई बार हम विज्ञापनों की चकाचौंध में इतने खो जाते हैं कि सही निर्णय नहीं ले पाते ।
विलासिता की वस्तुओं के विज्ञापन देकर उत्पादक लागत मूल्य से बीसों गुणा लाभ कमाते हैं । विशेषकर महिलाओं के उपयोग में आने वाली वस्तुओं की खूब कीमत वसूल की जाती है । दवाओं के विज्ञापन के चक्कर में पड़ कई बार हम अपना स्वास्थ्य खराब कर बैठते हैं ।
चुनाव के दिनों में राजनैतिक पार्टियों के विज्ञापन और पोस्टर देखने योग्य होते हैं । हर पार्टी लम्बे चौड़े वादे करते हुए इश्तहार निकालती हैं । नेताओं की तस्वीरें छापी जाती हैं । लाउडस्पीकरों से धुआंधार प्रचार किया जाता है और कई बार तो विज्ञापनों की बदौलत एक साधारण प्रत्याशी जीत जाता है और कहीं से कहीं पहुँच जाता है ।
कई बार विज्ञापन दूसरों की छवि को खराब करने का भी कारण बनते हैं और कई बार धार्मिक विद्वेष को भी भड़काते हैं । आज विज्ञापनों में स्त्रियों का प्रयोग बहुत अधिक बढ़ गया है । अर्धनग्न अवस्थाओं के विज्ञापन दाता विज्ञापन करते हैं ।
सिनेमा के विज्ञापन तो कई बार सीमा ही पार कर जाते हैं । अंग्रेजी फिल्मों के विज्ञापन और अनेक पत्रिकाएं नग्नता का प्रसारण करने में सर्वाधिक आगे हैं । इस प्रकार के विज्ञापनों पर रोक लगाई जानी चाहिए । विज्ञापनों के पीछे हमारा दृष्टिकोण स्वस्थ और नैतिक होना चाहिए ।