परितः वृक्षाः सन्ति। (विद्यालय)(स)(अ) विद्यालये न (आ) विद्यालयस्य (इ) विद्यालयात्`
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कारक-विभक्ति
उपपद-विभक्ति।
कारक-विभक्ति-कारक द्वारा प्रयुक्त विभक्ति कारकविभक्ति होती है। जैसे-‘बालकः विद्यालयं गच्छति।’ यहाँ ‘बालकः’ इस पद में कर्तृकारक होने से प्रथमा विभक्ति है। विद्यालयम्’ यहाँ कर्मकारक होने से द्वितीया विभक्ति है।
उपपद-विभक्ति-पद को आश्रित करके जो विभक्ति प्रयुक्त होती है, उसे उपपद विभक्ति कहते हैं। जैसे-‘गुरवे नमः। यहाँ ‘नम:’ इस पद के प्रयोग के कारण ‘गुरवे’ में चतुर्थी विभक्ति है।
संस्कृत में कारक छः माने जाते हैं और प्रत्येक कारक के लिए एक विभक्ति आती है। सम्बन्ध और सम्बोधन को कारक नहीं मानते हैं, परन्तु इनके लिए विभक्ति आती है। कारक, विभक्ति तथा इसके चिह्न यहाँ दिये जा रहे हैं-
RBSE Class 8 Sanskrit व्याकरण कारकम् 1
सामान्य रूप से कारक या विभक्ति का प्रयोग ऊपर लिखे चिह्न या अर्थ के लिए किया जाता है, परन्तु संस्कृत में कुछ अव्ययों, उपसर्गों, धातुओं या प्रत्ययों के कारण उनके साथ के पदों में विशेष विभक्ति आती है। इनको ‘उपपद विभक्ति’ कहते हैं। जैसे-
अभितः, परितः, उभयतः-इन शब्दों के साथ द्वितीयाविभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे-ग्रामं परितः क्षेत्राणि सन्ति (गाँव के चारों ओर खेत हैं)। विद्यालयं अभितः वृक्षाः सन्ति (विद्यालय के दोनों ओरवृक्ष हैं) माम् उभयतः बालकौ स्तः (मेरे दोनों ओर दो बालक हैं)।
हा, धिक्, प्रति-इन अव्ययों के साथ द्वितीया विभक्ति आती है। जैसे-धिक् दुर्जनम् (दुर्जन को धिक्कार), हा कष्टम् (हाय कष्ट है), सः ग्राम प्रति गच्छति (वह गाँव ३ की ओर जाता है), बालकाः गृहं प्रति धावन्ति (बालक घर की ओर दौड़ रहे हैं)।
अलम् (मत या बस)-इस अव्यय के साथ तृतीया विभक्ति आती है। जैसे-अलं भोजनेन (भोजन मत करो)
विना-इस अव्यय के साथ द्वितीया, तृतीया और पञ्चमी विभक्ति आती है। जैसे-धनं विना कार्यं न चलति (धन के बिना काम नहीं चलता है)।
सह, साकम्, समम् (साथ)-इन अव्ययों के योग में तृतीया विभक्ति आती है। जैसे–रामेण सह सीता गच्छति (राम के साथ सीता जाती है)। बालकः पिता साकं गच्छति (बालक पिता के साथ जाता है)। छात्रः मित्रेण समं पठति (छात्र मित्र के साथ पढ़ता है)।
अंग विकार-शरीर के जिस अंग में विकार हो अर्थात् विकृत अंगवाची शब्द में तृतीया विभक्ति आती है। जैसे-नेत्रेण काणः, कर्णाभ्याम् बधिरः (आँख से काना, कानों से बहरा)। पादेन खञ्जः (पैर से लंगड़ा)। शिरसा खाल्वाटः (सिर से गंजा)
नमः (नमस्कार) तथा स्वस्ति (कल्याण हो)इन दोनों अव्ययों के साथ चतुर्थी विभक्ति आती है। जैसे-
मित्राय नमः (मित्र को नमस्कार),
छात्राय स्वस्ति (छात्र का कल्याण हो)। गुरवे नमः (गुरु को नमस्कार)। हनुमते नमः। गणेशाय नमः। सरस्वत्यै नमः। अध्यापकाय नमः।
क्रुध, कथ्, रुच, दा (देना) धातु-इन धातुओं के क्रियापदों के साथ चतुर्थी विभक्ति आती है। जैसे-
मूर्खाय क्रुध्यति,
शिष्याय कथयति,
बालकाय पठनं रोचते (बालक को पढ़ना अच्छा लगता है)।
दरिद्राय धनं ददाति (गरीब को धन देता है)। पिता पुत्राय क्रुध्यति (पिता पुत्र पर क्रोध करता है)।
भी (डरना), त्रा(रक्षा करना)-इन दोनों धातुओं के कारण पञ्चमी विभक्ति आती है। जैसे-अयं चौरस्त् बिभेति दुर्जनात् त्रायते बालकः सिंहात् बिभेति (बालक सिंह से डरता है) नृपः शत्रुभ्यः त्रायते सः तस्मात् बिभेति।
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परितः वृक्षाः सन्ति। (विद्यालय)(स)(अ) विद्यालये न (आ) विद्यालयस्य (इ) विद्यालयात्`
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