पर्दे का महत्व ही नहीं जानते हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं प्रेमचंद के फटे जूते पाठ के आधार पर इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए
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पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए- तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं। पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए- जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
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