पराधीन सपनेहु सुख नाहीं मिश्र वाक्य में बदलिए
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पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं, सोच विचार देख मनमाही। तुलसीदास जी की यह काव्य पंक्ति गहन अर्थ रखती है। इसका संदेश है कि जो व्यक्ति स्वाधीन नहीं है, वह स्वजनों में भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता। पराधीनता वास्तव में अत्यंत कष्टदायक होती है।
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