Hindi, asked by MissPunjban, 5 months ago

पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं विषय पर लगभग 80 से 100 शब्दो में अनुच्छेद लिखिए।.​

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Answered by y85dipanshu
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Answer:

उपसंहार : हमें कभी भी मुसीबतों से हार नहीं माननी चाहिए। हमें पराधीनता को कभी-भी स्वीकार नहीं करना चाहिए क्योंकि हर व्यक्ति को जन्म से स्वतंत्रता प्राप्त होती है। व्यक्ति जो स्वतंत्र होकर अनुभव करता है वो पराधीन होकर नहीं कर सकता। जो व्यक्ति आँधियों से लड़ सकते हैं वे कभी-भी पराधीनता से पराजित नहीं होते हैं।

Answered by Anonymous
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वास्तव में समस्त प्राणी जगत् के लिए पराधीनता एक अभिशाप है। पराधीनता का अर्थ है-'दूसरों की अधीनता, मनुष्य पराधीनहोकर सपने में भी सुख नहीं प्राप्त कर सकता। पराधीन होकर जीना अर्थात् दूसरों का गुलाम होना, दूसरों की इच्छानुसार जीना, मन मारकर दूसरों के इशारों पर चलना आदि। यह एक भयंकर कष्ट के समान है। पराधीनता में कितनी भी सुख-सुविधाएँ, ऐशो-आराम मिलें, फिर भी व्यक्ति मानसिक शान्ति तथा स्वतन्त्रता का अनुभव कदापि नहीं कर सकता, क्योंकि व्यक्ति स्वभाव से ही स्वतंत्र रहना चाहता है। पराधीनता तो एक अभिशाप है, जिसमें व्यक्ति का सब कुछ अभिशप्त हो जाता है। हमारे प्यारे भारत देश को अंग्रेजों की सैकड़ों वर्षों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था; तभी 15 अगस्त, 1947 को हम सभी ने स्वतंत्रता की पहली साँस ली थी। पराधीनता मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी भी पसन्द नहीं करते। सोने के पिंजरे में बन्द पक्षी भी स्वतंत्र आकाश में उड़ना चाहता है, उड़ने के लिए छटपटाता है। वह कड़वी निबौरी खाना पसन्द करेगा, समुद्र का बहता खारा पानी पी लेगा, पर आजादी से जीना चाहता है, वह भी पंख पसार कर नीलगगन में उड़ान भरना चाहता है। पराधीनता में व्यक्ति अपने मान-सम्मान को सुरक्षित नहीं रख सकता, क्योंकि वह पराधीनता की चक्की में पिसता रहता है तथा शोषित होता रहता है। निर्धनता तथा अभावों से ग्रस्त जीवन में भी स्वतन्त्र होकर जीने में मनुष्य आनन्द तथा प्रसन्नता का अनुभव करता है। संभवतः इसी कारण गोस्वामी तुलसीदास ने अपने महाकाव्य रामचरितमानस में लिखा है-पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।

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