परिवारिक संवाद संस्कृत
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माता - गोविन्द! किं करोषि त्वम्?माता - गोविन्द तुम क्या कर रहे हो।गोविन्दः - पाठं पठामि अम्ब।गोविन्द - पाठ पठ रहा हूँ माँ।माता - वत्स! आपणं गत्वा आगच्छसि किम्?माता - पुत्र! दुकान जाकर आओगे क्या?गोविन्दः - अम्ब! शीघ्रं लिखित्वा गच्छामि। ?गोविन्द - माँ! शीघ्र लिख कर जाता हूँ। वहाँ से क्या लाना है?माता - वत्स! आपणं गत्वा लवणं, शर्करां,गुध्, द च आनय।माता - पुत्र! दुकान जाकर नमक, शक्कर, चालव, गुड़ और दाल ले आओ।गोविन्दः - भगिनीं वदतु अम्ब। सा किं करोति?गोविन्द - बहन को बोल दो माँ। वह क्या कर रही है।माता - सा अवकरं क्षिप्त्वा पात्रं प्रक्षालयति। द्राणेया जलं पूरयति। भूमिं वस्त्रेण भार्जयति। पुष्पाणि आनीय मालां करोति एवं तस्याः बहूनि कार्याणि सन्ति भोः।माता - वह कचड़े को फेंक कर बर्तन धो रही है। बाल्टी में जल भर रही है। जमीन (फर्श) में पोंछा लगायेगी, पुष्प लाकर माला बनायेगी उसे बहुत कार्य करना है।गोविन्दः - ममापि पठनं बहु अस्ति।गोविन्द - मुझे भी बहुत पढ़ना है।माता - दशनिमेषानन्तरे आपणं गत्वा आगच्छ। अनन्तरं पाठान पठ।माता - दश मिनट के अन्दर दुकान जाकर आओ। उसके बाद पाठ पढ़ो।गोविन्दः - तर्हि शीघ्रं धनं स्यूतं च ददातु अम्ब।गोविन्द - जल्दी से पैसा और झोला दे दो माँ।माता - आगमनसमये द्वौ कूर्चौ, अग्निपेटिके, समार्जन्यौ च आनयंमाता - आते समय दो ब्रश, माचिस और झाडू ले आना।गोविन्दः - द्वौ स्यूतौ ददातु, घनम् अधिकं ददातु, चाकलेहान् अपि आनयामि?गोविन्द - दो झोला दे दो, पैसा अधिक दे दो, मैं चाकलेट भी ले आऊँगा।माता - अतः एव त्वं शीघ्रं गन्तुम् उद्युघः। स्वीकुरू।माता - इसलिए तुम जाने के लिए तैयार है। इसे स्वीकार करो।
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