'पर्व्तिय स्थल' की जीवन-शैली कैसी होती है?
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पर्वतीय प्रदेश का जीवनचक्र ही निराला होता है। मैं खिड़की के पास बैठा था और पर्वतीय दृश्यों को देख रहा था। रेल के डिब्बे से उनके छोटे-छोटे घर बहुत सुंदर लग रहे थे। मैं उस दृश्य का आनंद ले रहा था। कालका स्टेशन आ गया। यह पर्वतीय प्रदेश का छोटा सा जंक्शन है। इसी स्थान पर मैंने देखा लोग पहाडी वेश-भूषा पहने इधर- उधर घूम रहे थे। सौम्यता और सादगी उनके मुख से झलकती थी, पर उनमें परिश्रम करने तथा पश्थितियों से जझने का संकल्प स्पष्ट दिखाई देता था। थोडी देर प्रतीक्षा करनी पड़ी। इस बीच हमने कुछ जलपान किया। तभी हमें शिमला के लिए गाडी मिली। इस गाड़ी में चार-पांच डिब्बे थे तथा इसके दोनों ओर इंजन जुड़े हुए थे। रास्ता चक्करदार तथा संकरा था। ठंड से हम सिकुड़े जा रहे थे। हम शिमला पहुँच गए।
शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है। यहाँ आधुनिक ढंग के मकान बने हुए हैं। शहर में कई सिनेमा घर है जो आकर्षण को और भी बढ़ाते हैं। मुझे स्केटिंग करने में बड़ा मज़ा आया। शिमला प्रवास के दौरान हमने राजभवन तथा इस नगरी का कोना-कोना छान मारा। हम वहाँ तीन दिन रहे। इन तीन दिनों में हमने दूर-दूर तक फैली प्रकृति की सुषमा का भरपूर आनंद लिया। ऊँची-ऊँची पर्वत मालाएँ, घाटियाँ, भाँति-भाँति के पुष्पों से लदे वृक्ष देखकर ऐसा मन कर उठा कि सारी उम्र यहीं बिता दें। पहाडियों की चोटियों से नीचे झाँकने पर गहरे गड्ढे ऐसे दिखाई देते मानो वे सीधे पाताल से संबद्ध हों। ये तीन दिन बड़ी मौज-मस्ती में कटे और तभी वापसी की तैयारियाँ शुरू कर दी गयीं। तीन दिन के प्रवास के बाद हम वहाँ से चल पड़े। इस बार हम बस द्वारा चले। बस से हमने ऊँची-नीची पहाड़ियाँ देखीं तथा चक्करदार साँपनुमा मोड़ देखे, जिनके नीचे गहरे गड्ढे थे। पर्वतों के आस-पास हरियाली, खेत में हमें आकृष्ट कर रहे थे। परंतु हम धीरे-धीरे इस प्रदेश से दूर होते गए और अपने घर आ गए। आज भी मुझे वह यात्रा याद आती है।
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