परिवर्तन कविता की मूल संवेदना रेखांकित कीजिए
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कवि सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा लिखी गई उस होने वाले परिवर्तन की छोटी-छोटी संवेदना को सामने रखती है जो समाज में देश में ब्रह्मांड में व्यक्ति में अवश्य होती है जिनको कोई बदल नहीं आज जहां पर उत्थान है कल वहां से पता नहीं आज जहां बचपन का कोमल गात जरा का पीला जहां 4 दिन के सुख चांदनी रात है कल वहां गहरा अंधकार है इसी तरह से सिर है कल वहां पतझड़ इस तरह संसार में सांसद परिवर्तन है इससे कोई बच नहीं सकता उसकी बहन करता बासु के क्षेत्रफल के समान है और जिससे यह संसार कई बार चिप कार्यकर्ता अखिल विश्व की विशाल संवेदना को लेकर परिवर्तन कविता उपस्थित होती है और अंततः परिवर्तन एक सत्य है
धन्यवाद
परिवर्तन कविता की मूल संवेदना निम्न प्रकार से रेखांकित किया गया है ।
- परिवर्तन कविता सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता है।
- परिवर्तन कविता " पल्लवन " नामक संकलन से लिया गया है।
- पंतजी का कहना है कि परिवर्तन जीवन का शाश्वत सत्य है।
- पृथ्वी का सारा वैभव मिथ्या है। वह सारा वैभव अब खो गया है। संसार की अचिरता को देखकर हवा भी ठंडी सांसे भरती है।
- आसमान ओंस के आंसू गिराता है।
- कवि कहता है कि सुख व दुख जीवन के दो पहलू है। दोनों का आना जाना लगा रहता है।
- दुख व सुख एक चक्र की तरह घूमते रहते गई, आज जो दुख है कल वहीं दुख , सुख में परिवर्तित हो जाएगा ।
- जीवन बिना आंसू के भार लगता है।
- इस संसार में जो दिन है वह दुर्बल है अतः क्षमा, दया तथा प्यार का महत्व माना जाता है।
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