परिवर्तन सृष्टि का नियम है
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वास्तव में कहा जाये तो हम हर व्यक्ति को उसकी विचारधारा से पहचानते अथवा परखते हैं, लेकिन इस विचारधारा का निर्माण कैसे होता है? किसी की विचारधारा एकदम मौलिक नहीं हो सकती। हम कोई भी विचारधारा अथवा दृष्टिकोण अपनी शिक्षा-दीक्षा अथवा अपने परिवेश के प्रभाव से ही अपनाते हैं। जीवन की हर अवस्था में हमारे रोल मॉडल भी अवश्य होते हैं। जो लोग हमें प्रभावशाली लगते हैं, उनकी आदतों को अपनाने में हमें देर नहीं लगती। एक तरह से हम उनकी विचारधारा को ओढ़ लेते हैं।
यह हमारी वास्तविक विचारधारा नहीं होती अतः इसे सही या गलत कहना भी बिलकुल संभव नहीं। वो दूसरी बात है कि हमें वह बिलकुल सही और संतुलित लगती है।
किशोरावस्था या युवावस्था में जिन लोगों की विचारधारा का प्रभाव हम पर पड़ता है, कई बार वह जीवनपर्यंत रहता है।
सही और संतुलित विचारधारा हो तो इसमें कोई बुराई भी दृष्टिगोचर नहीं होती, लेकिन सही और गलत का सही निर्णय कैसे हो यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं। हमारे अनुभव बताते हैं कि हम जो अच्छी और महंगी वस्तुएं खरीदते हैं, कई बार उतनी उपयोगी नहीं होतीं जितनी सामान्य और कम दाम की वस्तुएं होती हैं। कई बार हम महंगी वस्तुएं खरीद तो लेते हैं, लेकिन वे शोपीस बनकर रह जाती हैं। यही तथ्य विचारधारा पर भी