परिवर्तनशील अनूप
योग के नियम की सचित्र व्याख्या करियए
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Q 22
व्यष्टि अर्थशास्त्र
प्रश्न 22: परिवर्तनीय अनुपात के नियम की व्याख्या कीजिए तथा रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण कीजिए।
उत्तर- किसी वस्तु की उत्पादन-मात्रा इसके निर्माण में प्रयुक्त साधनों की मात्रा पर निर्भर करती है, जिसे गणित की भाषा में इस प्रकार व्यक्त किया जाता है, X = f(a,b,c) अर्थात् वस्तु X की उत्पादन-मात्रा a, b, c साधनों की मात्रा पर निर्भर करती है । a, b, c साधनों का X वस्तु से संबंध उत्पाद की प्रकृति के अनुसार होता है। उदाहरण के लिए, कृषि-उत्पादन में भूमि का महत्व अधिक होता है, जबकि सिलाई की मशीन के निर्माण में कुशल श्रम का ।
यदि उत्पत्ति के साधन बड़े परिमाण में जुटाए जाएं, तो वस्तु का उत्पादन बड़ी मात्रा में होगा और यदि उत्पत्ति के साधन कम परिमाण में जुटाए जाएं, तो वस्तु का उत्पादन थोड़ी मात्रा में होगा। यदि उद्यमी उत्पादन का परिमाण बढ़ाना चाहें, तो उसके सामने दो विकल्प होते हैं- (क) उत्पत्ति के सभी साधनों की मात्रा बढ़ाना अथवा (ख) कुछ साधनों की मात्रा बढ़ाना और शेष साधनों की मात्रा स्थिर रखना। उत्पादन के साथ साधनों का जो संबंध होता है, उसी को ‘प्रतिफल का नियम' कहा जाता है।
नियम की व्याख्या
‘परिवर्तनीय अनुपात का नियम' अर्थशास्त्र का बुनियादी, महत्वपूर्ण और व्यापक नियम है । नियम इस व्यावहारिक सत्य पर आधारित है कि व्यवहार में उत्पत्ति के कुछ साधनों की मात्रा इच्छानुसार घटाई-बढ़ाई नहीं जा सकती। अतः नियम इस अतिरिक्त उत्पादन-मात्रा की ओर संकेत करता है जो कुछ साधनों की मात्रा स्थिर रखते हुए (परिवर्तनशील) साधन की मात्रा बढ़ाने से प्राप्त होता है । परिवर्तनीय अनुपात के नियम को 'आनुपातिकता का नियम' भी कहा जाता है; क्योंकि यह बताता हैं कि साधनों का अनुपात बढ़ाने का उत्पादन-मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है। इस नियम को ‘प्रतिफल का नियम' भी कहा जाता है, क्योंकि यह बताता है कि जब कुछ
साधनों की मात्रा स्थिर रखते हुए अन्य साधनों की मात्रा बढ़ा दी जाए, तो परिवर्तनशील साधन का प्रतिफल किस प्रकार बदलता है । परिवर्तनीय अनुपात के नियम को 'असमान अनुपातीय प्रतिफल का नियम' भी कहा जाता है; क्योंकि यह बताता है कि परिवर्तनशील साधन का सीमाँत प्रतिफल विभिन्न अवस्थाओं में समान दर से नहीं बदलता।
मान लिया किसी वस्तु के उत्पादन में 'भूमि' और 'श्रम' केवल दो साधनों की आवश्यकता पड़ती है, जिनमें से भूमि स्थिर और श्रम परिवर्तनशील साधन है। कल्पना कीजिए कि परिवर्तनशील साधन (श्रम) की मात्रा में उत्तरोत्तर वृद्धि के फलस्वरूप वस्तु की उत्पादन-मात्रा अग्र तालिका के अनुसार प्रभावित होती है
क्रमांक स्थिर लागत
(भूमि) परिवर्तनीय साधन
(श्रम)
कुल उत्पादन
(इकाइयों में)
औसत उत्पादन
(इकाइयों में) सीमाँत उत्पादन
(इकाइयों में)
1 20 एकड़ भूमि 1 श्रमिक 15 15 15
2 20 एकड़ भूमि 2 श्रमिक 32 16 17
3 20 एकड़ भूमि 3 श्रमिक 51 17 19
4 20 एकड़ भूमि 4 श्रमिक 72 18 21
5 20 एकड़ भूमि 5 श्रमिक 93 18.6 15
6 20 एकड़ भूमि 6 श्रमिक 108 18 -
7 20 एकड़ भूमि 7 श्रमिक 112 16 -
8 20 एकड़ भूमि 8 श्रमिक 100 12.5 -12
तालिका से स्पष्ट है कि 20 एकड़ की निश्चित भूमि पर एक श्रमिक जुटाने से 15 इकाइयों के बराबर उत्पादन प्राप्त होता है। श्रमिकों की संख्या बढ़ाकर दो कर देने पर कुल उत्पादन बढ़कर 32 इकाइयाँ तथा श्रम का सीमॉत उत्पादन बढ़कर 17 इकाइयाँ हो जाता है । श्रमिकों की संख्या दो के स्थान पर तीन और तीन के स्थान पर चार कर देने से कुल उत्पादन में क्रमशः 19 और 21 इकाइयों की वृद्धि होती है। दूसरे शब्दों में, 40 एकड़ की भूमि पर श्रमिकों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ाने से (4 तक) कुल उत्पादन और सीमॉत उत्पादन की मात्रा बढ़ती जाती है। जब चार श्रमिकों के स्थान पर पांच श्रमिक जुटाए जाते हैं, तब कुल उत्पादन तो बढ़ता है। किन्तु श्रम का सीमाँत उत्पादन स्थिर बना रहता है । तदुपरांत श्रमिकों की संख्या पांच के स्थान पर छ: और छ: के स्थान पर सात कर देने से कुल उत्पादन में क्रमशः 15 और 4 इकाइयों की वृद्धि होती है अर्थात् श्रम का सीमाँत उत्पादन क्रमशः घटता जाता है। कारण यह है कि भूमि का परिमाण ध्यान में रखते हुए श्रमिक उपयुक्त संख्या से अधिक हो जाते हैं अतः कुल उत्पादन में अधिक वृद्धि की गुंजाइश नहीं रहती। आठवां श्रमिक जुटाने पर कुल उत्पादन में वृद्धि के स्थान पर हास होने लगता है अर्थात् श्रम का सीमाँत उत्पादन ‘ऋणात्मक' हो जाता है।
बैनहम के शब्दों में, “एक बिन्दु के पश्चात् जब साधन-विशेष को अनुपात अन्य साधनों के संयोग में बढ़ाया जाता है तब उस साधन से सीमाँत और औसत उत्पादन घटती हुई दर पर प्राप्त होता है । जब परिवर्तनशील साधन से प्राप्त सीमाँत और औसत उत्पत्ति की मात्रा घटने लगती है, तब विभिन्न साधनों का संयोग आदर्श अनुपात में नहीं रह पाता है।” । प्रस्तुत रेखाचित्र से स्पष्ट है कि भूमि की मात्रा स्थिर रहते हुए, श्रम की मात्रा अल' हो जाता है। तदुपरांत श्रम की मात्रा बढ़ाने पर कुल उत्पादन स्थिर बना रहता है। एक बिन्दु के पश्चात् श्रम की मात्रा बढ़ने पर कुल उत्पादन घटना आरंभ कर देता है। रेखाचित्र से यह भी स्पष्ट है कि जब तक श्रम की मात्रा (परिवर्तनशील साधन) अ ल रहती है तब तक सीमाँत उत्पादन की मात्रा पेढ़ती जाती है। जब श्रम की मात्रा बढ़कर अल' कर दी जाती है तब सीमाँत उत्पादकता स्थिर रहती है।
तदुपरांत श्रम की मात्रा में प्रत्येक वृद्धि के साथ उसकी सीमाँत उत्पादकता घटती जाती है अंततः यह ऋणात्मक हो जाती है। इस प्रकार परिवर्तनशील अनुपात के नियम के अंतर्गत सीमाँत उत्पादन की तीन अवस्थाएं होती हैं -
प्रथम अवस्था में जब स्थिर साधन के साथ परिवर्तनशील साधन की मात्रा बढाई जाती है,