Hindi, asked by bro0shivam, 4 days ago

पर्वतीय क्षेत्र में होने वाली व्यावसायिक प्रगति या विकास का प्रकृति वातवरन पर क्या दुष्प्रभव पड़ा है इस दुशप्रभा को रोकने के लिए एक सहज नागरिक के रूप में आपकी क्या भूमिका हो सकती है?​

Answers

Answered by cutegirl3786
2

Answer:

पर्वतीय क्षेत्रों में वचनों की कटाई तथा भू-क्षरण का पर्यावरण पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। इन दोनों समस्याओं के कारण जलस्रोत सूखते जा रहे हैं। बाढ़ में वृद्धि होती जा रही है, अनाजों की उत्पत्ति में गिरावट आ रही है। पशुओं द्वारा विशेष रूप से भेड़-बकरियों द्वारा चराई, भवनों, सड़कों, बाँधों, बड़े तथा मध्यम उद्योगों के अनियंत्रित निर्माण तथा खनन आदि कुछ अन्य कारण है जिनसे पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरण सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं और बढ़ती ही जा रही हैं। लेखक ने प्रस्तुत लेख में कुछ सुझाव दिये हैं जो हमारी प्राकृतिक पर्यावरण तथा जीवनयापन प्रणाली के लिये आवश्यक पारिस्थितिकी सन्तुलन की सुरक्षा तथा संरक्षण करने और पर्वतीय क्षेत्रों का एकीकृत विकास करने में उपयोगी साबित हो सकेंगे।

पर्वतीय क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर किये जा रहे खनन कार्यों के कारण वायुमण्डल तो दूषित होता ही है, इसके साथ-साथ वायु में पत्थर के कणों की मात्रा भी अधिक हो जाती है जोकि उच्च तापमान के लिये उत्तरदायी है। इस प्रकार के लक्षणों के साथ-साथ हरित सामग्री के अपवर्तन के कारण वर्षा ऋतु के चक्र में व्यवधान आता है। सम्भवतः गढ़वाल, हिमालय तथा हिमाचल प्रदेश के पर्वतों पर जल भण्डारण की गम्भीर समस्या इसी का एक भाग है।पर्वतीय क्षेत्र में विकास आयोजना की आवश्यकता तथा महत्ता पर बार-बार बल दिया गया है। वर्ष में आयोजित किये गए नगरपालिका सम्मेलन में पर्वतीय क्षेत्रों तथा उत्तर-पूर्व क्षेत्र के लोगों को अपनी पारम्परिक प्रणाली की सरकार और विभिन्न सामाजिक सम्बन्धों, जिनके लिये ऐसे क्षेत्रों में समग्र रूप से कोई सामान्य मापदंड लागू किया जाना सम्भव नहीं है, को ध्यान में रखते हुए इन क्षेत्रों की जनता की विशेष आवश्यकताओं को अभिज्ञात किया गया था जिसकी परिणति नगरपालिका के वें संविधान संशोधन, के रूप में हुई। विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति दिनांक अप्रैल, को प्राप्त हुई थी और अधिनियम जनवरी से प्रवृत्त हुआ। यह भी महसूस किया गया था कि पर्वतीय क्षेत्रों में संरचनात्मकों की लागत मैदानी भागों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक है, और इसलिये बड़े पैमाने पर निवेश किया जाना अपेक्षित है। इसी प्रकार नगर की कुल जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए वार्डों का आकार छोटा होना चाहिए और इसीलिये ऐसे क्षेत्रों में छोटे वार्डों का गठन किया जाना चाहिए।

पर्वतीय नगर स्वास्थ्यवर्धक जलवायु और नैसर्गिक सौन्दर्य का बोध कराते हैं जिनका पर्यटन की दृष्टि से रुचिकर केन्द्रों के रूप में संरक्षण, विकास तथा रख-रखाव किया जाना आवश्यक है। अतः स्थानीय निकायों द्वारा राज्य के पर्यटन और परिवहन विभागों के साथ परामर्श करके विकास का एक चरणबद्ध, सुव्यवस्थित तथा एकीकृत कार्यक्रम तैयार किया जाना जरूरी है।

वनों की कटाई तथा भूक्षरण पर्वतों की मुख्य समस्या है। इन दोनों समस्याओं के कारण जलस्रोत सूखते जा रहे हैं। बाढ़ में वृद्धि होती जा रही है और अनाज तथा ‘कैशक्रोप’, चारे ईंधन तथा अन्य लघु वन्य उत्पादों की उत्पत्ति में गिरावट आती जा रही है। पशुओं द्वारा, विशेष रूप से भेड़-बकरियों द्वारा दीर्घकाल तक चराई करना, अधिकांश पर्वतीय क्षेत्रों की गिरावट का मुख्य कारण है। इसके साथ ही भवनों, सड़कों, बाँधों, बड़े तथा मध्यम उद्योगों के अनियंत्रित निर्माण, खनन आदि के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरण सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं और बढ़ती ही जा रही हैं।

Similar questions