पर्वतीय सौंदर्य पर निबंध
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देश के दक्षिण हिस्से में स्थित केरल को देवों की भूमि कहा जाता है। इसके एक किनारे पर दक्षिणी घाट के घने जंगल हैं, तो दूसरे किनारे पर अरब सागर लहरा रहा है। इसी केरल में नयनाभिराम पर्वतीय स्थल है 'मुन्नार' जहाँ का वातावरण आल्हादित करने वाला व ठंडा रहता है। यह कोचीन से १३० किलोमीटर दूर है।
कोचीन तीन शहरों का संगम है जिन्हें एर्नाकूलम, कोच्चि व कोचीन के नाम से जाना जाता है। हम ट्रेन द्वारा त्रिवेंद्रम (तिरूअनंतपुरम) से एर्नाकुलम पहुँचे। वहाँ से मुन्नार जाने के लिए एक टेक्सी किराए पर ली। प्रातः वहाँ से यात्रा शुरू की, तब दूर तक लहराती हुई सड़क को देखकर लगा नहीं कि आगे की यात्रा कठिन है।
आदिमाली कस्बे को पार करके थोड़ा आगे पहुँचने पर तीनों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ, ऊँचाई से गिरता हुआ एक जलप्रपात देखा जिसे अट्टूकड जलप्रपात कहते हैं। सड़क से इसकी दूरी ज्यादा होने के कारण हम इसे केवल निहार ही सके।
चारो और की सुंदर हरियाली जिसमें नारियल, सुपारी व केले के पेड़ बहुतायत से थे, देखते-देखते पता ही नहीं चला कि कब सर्पिल रास्ता शुरू हो गया। रास्ते के दोनों ओर जंगली फूलों के पौधे लगे हुए थे जिनसे पहाड़ी की सुषमा द्विगुणित हो रही थी। हमारे वाहन चालक ने बताया कि यहाँ पर अक्टूबर मास में हर बारह वर्ष बाद कुरिंजी के नीले रंग के फूलों की बहार आती है, जिससे सभी पर्वत श्रृंखलाएँ नीले रंग में रंग जाती हैं। हम वह दृश्य तो नहीं देख सके, लेकिन विभिन्ना रंगों के फूलों से लदी हुई पहाड़ियों भी अत्यंत नयनाभिराम लग रही थीं।
आदिमाली कस्बे को पार करके थोड़ा आगे पहुँचने पर तीनों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ, ऊँचाई से गिरता हुआ एक जलप्रपात देखा जिसे अट्टूकड जलप्रपात कहते हैं। सड़क से इसकी दूरी ज्यादा होने के कारण हम इसे केवल निहार ही सके। इसके अलावा भी रास्ते में छोटे-छोटे कल-कल बहते हुए कई झरने दिखाई पड़ते हैं।
Hope it helps you.
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कोचीन तीन शहरों का संगम है जिन्हें एर्नाकूलम, कोच्चि व कोचीन के नाम से जाना जाता है। हम ट्रेन द्वारा त्रिवेंद्रम (तिरूअनंतपुरम) से एर्नाकुलम पहुँचे। वहाँ से मुन्नार जाने के लिए एक टेक्सी किराए पर ली। प्रातः वहाँ से यात्रा शुरू की, तब दूर तक लहराती हुई सड़क को देखकर लगा नहीं कि आगे की यात्रा कठिन है।
आदिमाली कस्बे को पार करके थोड़ा आगे पहुँचने पर तीनों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ, ऊँचाई से गिरता हुआ एक जलप्रपात देखा जिसे अट्टूकड जलप्रपात कहते हैं। सड़क से इसकी दूरी ज्यादा होने के कारण हम इसे केवल निहार ही सके।
चारो और की सुंदर हरियाली जिसमें नारियल, सुपारी व केले के पेड़ बहुतायत से थे, देखते-देखते पता ही नहीं चला कि कब सर्पिल रास्ता शुरू हो गया। रास्ते के दोनों ओर जंगली फूलों के पौधे लगे हुए थे जिनसे पहाड़ी की सुषमा द्विगुणित हो रही थी। हमारे वाहन चालक ने बताया कि यहाँ पर अक्टूबर मास में हर बारह वर्ष बाद कुरिंजी के नीले रंग के फूलों की बहार आती है, जिससे सभी पर्वत श्रृंखलाएँ नीले रंग में रंग जाती हैं। हम वह दृश्य तो नहीं देख सके, लेकिन विभिन्ना रंगों के फूलों से लदी हुई पहाड़ियों भी अत्यंत नयनाभिराम लग रही थीं।
आदिमाली कस्बे को पार करके थोड़ा आगे पहुँचने पर तीनों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ, ऊँचाई से गिरता हुआ एक जलप्रपात देखा जिसे अट्टूकड जलप्रपात कहते हैं। सड़क से इसकी दूरी ज्यादा होने के कारण हम इसे केवल निहार ही सके। इसके अलावा भी रास्ते में छोटे-छोटे कल-कल बहते हुए कई झरने दिखाई पड़ते हैं।
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