पर्वतकहना शीश उठाकर,
तुम भी ऊचेकज जायो।
साकार कहताशकर,
मन में ईलाओ ।
साइन हो बया कहती?
38. गिरकर तरल रंग।
भरलो , श्रर को अपने मन में
मोठ-मोह मृदुक उमंग ।।
प्रा
1. पर्तन हमसे क्या करता है,
2
सागर लाशकर वन्या कहता है,
चाकी
रिल रंग हमें क्या कहना चाहता
4. शीश की अ
अर्थ का
कविता का हाकिमकविता लिया गया
कविता में है।
w
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पर्वतकहना शीश उठाकर,
तुम भी ऊचेकज जायो।
साकार कहताशकर,
मन में ईलाओ ।
साइन हो बया कहती?
38. गिरकर तरल रंग।
भरलो , श्रर को अपने मन में
मोठ-मोह मृदुक उमंग ।।
प्रा
1. पर्तन हमसे क्या करता है,
2
सागर लाशकर वन्या कहता है,
चाकी
रिल रंग हमें क्या कहना चाहता
4. शीश की अ
अर्थ का
कविता का हाकिमकविता लिया गया
कविता में है।
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