पर्यावरण अध्र्र्न के बहु
आर्यमी स्वरूप से आप क्र्य समझते हैं? ववभिन्न पर्यावरणीर् समस्र्यओं को हल करने में बहु
ववषर्क दृष्टिकोण कै से सहयर्क है ? ववस्तयर से व्र्यख्र्य कीष्िए ।
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‘प्रदुषण’ का शाब्दिक अर्थ है मालिन्य या दूषित करना। प्रदूषण की सही मायने में परिभाषा उसके शाब्दिक अर्थ से अधिक गहरी तथा विचारणीय है। प्रदूषण एक मानव निर्मित कृत्य है, न केवल उसके परिवेश, बल्कि स्वयं उसकी अंतरात्मा को दूषित करता है। प्रदूषण इसलिए एक ऐसा अहम् मुद्दा है, जिस पर पर्याप्त अध्ययन एवं चिंतन की आवश्यकता है।
प्रतिदिन अखबारों में, किताबों में, पुस्तिकाओं में हम पर्यावरण संबंधी विशेष सामग्री तथा प्रदूषण से जुड़ा बेहद संगीन लेख पढ़ते रहते हैं, परंतु हर मनुष्य यह अवश्य जानता है कि वह जिन आंकड़ों तथा प्रभावों को पढ़ रहा है, वे सिर्फ असलियत का एक हिस्सा है। मनुष्य एक ऐसा जीव है, जिस पर उसके आस-पास हो रहे बदलाव से असर तो पड़ता है, परंतु वह अपने विचारों को संकुचित कर आगे बढ़ने में विश्वास रखता है। इसलिए कह सकते हैं कि प्रदूषण मानव के मस्तिष्क की उपज है, जिसकी रचना करके वह अपने जीवन के भविष्य की तरफ गतिमान हो चुका है। धरती स्वयं वर्तुलाकार है और सूर्य के चारों ओर एक चक्राकार पथ पर घूमती है, परंतु इस गति के साथ-साथ वह मानव-निर्मित चक्रव्यूह में फंसती चली जा रही है। इस चक्रव्यूह में धरती माता को न कवल शारीरिक किंतु आत्मिक विपदाओं से भी युद्ध करना पड़ रहा है, क्योंकि एक मां का स्वयं के पुत्रों को एक प्रतिद्वंदी के रूप में देखना आंतरिक आघात है।
इस लेख में भी आंकड़ों, विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे विभिन्न प्रकार के प्रदूषण, प्रदूषण से उत्पन्न हो रही जटिल समस्याएं और व्यवधान, प्रदूषण से हो रही बीमारियों इत्यादि अनेक प्रकार की चीजों का व्याख्यान किया जा सकता है, परंतु अहम् विषय-वस्तु प्रदूषण है, जो केवल मनुष्य के आस-पास हो रहे प्रदूषण से ही नहीं, बल्कि हृदय से जुड़े तारों से भी संबंध रखती है। मनुष्य का जीवन तीन अहम् भूमिकाओं से बना है-आस्था, निष्ठा और प्रतिष्ठा, जिसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है।