पर्यावरण चुनौतियां और समाधान
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पर्यावरण चुनौतियां:-
भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहाँ व्यापक जैवविविधतायें हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अब दिखने लगे हैं। जिसके परिणाम भविष्य में घातक हो सकते हैं। हिमालय के 50 से भी अधिक ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं।
ग्लेशियरों के सिकुड़ने का सीधा प्रभाव हिमालयी वनस्पतियों व वहाँ रहने वाले जीव जंतुओं , वनों के साथ-साथ निचले हिमालयी क्षेत्रों में फसली पौधों तथा हिमालय क्षेत्र में रहने वाले लोगों पर पड़ेगा। इसके अलावा पूरा देश भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा।इसीलिए ग्लेशियरों को सिकुड़ने से बचाने के उपाय समय रहते ढूढ़ने होंगे।
इसके अलावा भी कई और चुनौतियों हमारे सामने हैं।
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता खतरे में हैं। हिमालय का बदलता पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए वायु , जल एवं अन्न की कमी का कारण हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन , ग्लेशियरों का पिघलना , वर्षा एवं बर्फबारी के समय चक्र में हो रहे परिवर्तन, समुद्र के तल की ऊंचाई बढ़ने से पूरी दुनिया के सामने एक नया संकट पैदा होने वाला हैं ।और अगले 50 वर्षों में पहाड़ों का तापमान दो से चार डिग्री बढ़ने का अनुमान हैं। ऐसी परिस्थिति से निपटना इंसान के लिए वाकई चुनौती भरा होगा।
जीवन की मुख्य आवश्यकताओं में स्वच्छ हवा , पानी ही है। अगर गंगा-यमुना जैसी नदियों में जलस्तर कम होने से देश की आर्थिक तरक्की में बाधा खड़ी हो जाएगी। लगातार वनो का कटान व प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अंततः मानव जाति को ही ले डूबेगा।
पर्यावरण समाधान:-
हिमालय की रक्षा के लिए अब एक राष्ट्रीय संकल्प की आवश्यकता है। हिमालय के अनगिनत ऋणों को हम सिर्फ इसका संरक्षण कर ही चुका सकते हैं। हमने अपने थोड़े से फायदे के लिए हिमालय और उसकी संपत्ति को लगातार नुकसान पहुंचाया है।
हम यह भूल गए हैं कि अगर हिमालय सुरक्षित नहीं रहेगा तो , हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां भी सुरक्षित नहीं रह सकती हैं।
इसीलिए हिमालय को सुरक्षित व संभाल कर रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। हिमालय की नैसर्गिक खूबसूरती और जैव विविधता जितना हिमालयीे पर्यावरण के लिए अच्छा है। उससे कहीं ज्यादा हमारे लिए जरूरी है।
हिमालय का संरक्षण तभी हो पायेगा , जब हम सभी लोग हिमालय के महत्व और हिमालय के उपकारों को समझें । स्थानीय लोग के साथ साथ हमारी भावी पीढ़ी को भी हिमालय के संरक्षण के लिए जागरुक होना पड़ेगा ।
हिमालय के अत्यंत संवेदनशील पर्यावरणीय स्थिति को देखते हुए इस विशाल अस्तित्व वाले पर्वत माला को सिर्फ एक उपयोगी वस्तु समझ कर इसका शोषण न किया जाय। बल्कि इसके संरक्षण के लिए एक बड़ा अभियान या आन्दोलन खड़ा किया , ताकि इसकी रक्षा के लिए सब लोग सोचना शुरू कर दें ।
हिमालय की रक्षा में सरकार , पर्यावरणविद् तथा स्वयंसेवी संस्थाओं और आम जन मानस की मजबूत भागीदारी होनी चाहिये।
पहाड़ी इलाकों में पर्यटन को बढ़ावा देना आवश्यक है क्योंकि इससे सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती है और स्थानीय लोगों को भी अपने इलाकों में ही रोजगार उपलब्ध होता है। लेकिन पर्यावरणीय नियम कानून के क्रियान्वयन में ढिलाई और उदासीनता पर कठोर दंड दिया जाना चाहिए।
हिमालय पर आने वाले हर संभावित खतरे को भांप कर उसे दूर करना होगा। क्योंकि अगर हिमालय पर कोई खतरा आता हैं तो वह न सिर्फ भारत के लिए बल्कि चीन , नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान , पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार आदि देशों के लिए भी भयंकर हो सकता है।
हिमालय की विराटता , उसके प्राकृतिक सौंदर्य और उसकी आध्यात्मिकता को बरकरार रखना अति आवश्यक हैं।
हम सब को हिमालय की सामाजिकता , उसका पारिस्थितिकी तंत्र , भू-गर्भ , भूगोल , जैव-विविधता को अच्छे से समझ कर उसके संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगें है।
हालांकि कुछ स्थानीय लोग और पर्यावरणविद , स्वयंसेवी संगठन समय समय पर पहाड़ों और वनों की कटाई व दोहन के खिलाफ आवाज उठा कर इन्हें बचाने के लिए प्रयत्न शील रहते हैं
हिमालय के पर्यावरण को बचाने के लिए जरूरत हैं एक मजबूत राजनीतिक नेतृत्व व इच्छा शक्ति की। साथ में स्वयंसेवी संगठनों व लोगों का मिलकर हिमालय की हिफाजत के लिए कोई ईमानदार पहल करने की।
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