पर्यावरण का सुधार कैसे करना चाहिए -निबंध
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यह हमारे ही हित में है कि हम पर्यावरण की रक्षा करें। पर्यावरण को बचाए रखने में यदि हम सफल होंगे, तो आने वाली संतानों के लिए भी संसाधनों का उपयोग करने हेतु कुछ छोड़ जाएंगे। उद्योगों द्वारा फैलाए जा रहे कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम स्तर पर लाना आवश्यक है। सभी देशों को मिलकर इस कार्य में योगदान देना होगा। भारत भी जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करने हेतु प्रयास कर रहा है। सौर ऊर्जा के उपयोग पर सरकार ध्यान दे रही है।
दरअसल विकसित एवं विकासशील देशों के बीच हितों का टकराव है। वर्ष 2000 में सहस्राब्दी विकास लक्ष्य एवं वर्ष 2015 में सतत विकास लक्ष्य निर्धारित किए गए थे, जिन्हें वर्ष 2030 तक विश्व के सभी देशों को हासिल करना है। इस मोर्चे पर विकसित देशों के प्रयासों में कमी देखने में आ रही है।
आज यह तय होना जरूरी है कि विकसित देशों द्वारा विलासिता संबंधी आवश्यकताओं हेतु प्रकृति के संसाधनों का कितना उपयोग किया जाए एवं विकासशील देशों द्वारा मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्राकृतिक संसाधनों का कितना इस्तेमाल किया जाए। अनेक देशों ने प्रकृति से अधिकतम लिया है, पर अब जब वापस करने की जिम्मेदारी आई है, तो वे पीछे हट रहे हैं।
चीन, भारत, दक्षिण पूर्वी देशों एवं अफ्रीका में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। फिर भी इन देशों में प्राकृतिक संसाधनों की प्रति व्यक्ति खपत कम है। जबकि विकसित देशों में आबादी भले कम है, पर प्राकृतिक संसाधनों की प्रति व्यक्ति खपत बहुत अधिक है।
ऐसे में, सिद्धांततः विकसित देशों को पर्यावरण में सुधार हेतु ज़्यादा योगदान करना चाहिए। पर वे ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि उनके यहां कल-कारखानों में इस संबंध में किए जाने वाले तकनीकी बदलाव पर बहुत अधिक खर्च होगा, जो वे करना नहीं चाहते। आर्थिक वृद्धि को नापने का हमारा नजरिया भी बदलना चाहिए।
सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के बजाय सतत एवं स्थिर विकास को आर्थिक विकास का पैमाना बनाया जाना चाहिए, ताकि प्राकृतिक संसाधनों का भंडार बरकरार रखा जा सके। साथ ही, रीसाइकलिंग उद्योग को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। पूरी दुनिया में उपज का एक तिहाई हिस्सा बर्बाद हो जाता है।