Hindi, asked by arshpreetkaur080, 3 months ago








पर्यावरण की समृद्धि और स्वस्थ होने से ही हमारा जीवन भी समृद्ध और सुखी होता है। हमारे पूर्वज प्रकृ.
ति की दैवीय शक्ति के रूप में उपासना करते थे, उसे परमेश्वरी भी कहते थे। उन्होंने पर्यावरण का बहुत
गहरा चिंतन किया। जो कुछ पर्यावरण के लिए हानिकारक था, उसे आसुरी प्रवृत्ति कहा और जो हितकर
था,
उसे दैवीय प्रवृत्ति कहा। भारत के पुराने ग्रंथों में वृक्षों और वनों का चित्रण पृथ्वी के रक्षक के रूप
में किया गया है। उनको संतान की तरह पाला जाता था और हरे-भरे पेड़ों को अपने किसी स्वार्थ के लिए
काटना पाप कहा जाता था। अनावश्यक रूप से पेड़ों को काटने पर दंड का विधान भी था। मनुष्य समझता
है कि समस्त प्राकृतिक संपदा पर केवल उसी का आधिपत्य है। हम जैसा चाहें उसका उपयोग करें। इसी
भोगवादी प्रवृत्ति के कारण मानव ने उसका इस हद तक शोषण कर लिया है कि अब उसका अस्तित्व ही
संकट में पड़ गया है। वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी दे रहे हैं कि प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करो, अन्यथा
मानव जाति नहीं बच पाएगी। इन जीवन-उपयोगी वृक्षों की देवी-देवता की तरह पूजा की जाती है। पर्यावरण
की दृष्टि से वृक्ष को परम रक्षक और मित्र बताया गया है। यह हमें अमृत प्रदान करता है, दूषित वायु को
स्वयं ग्रहण करके हमें प्राणवायु देता है, मरुस्थल का नियंत्रक होता है, नदियों की बाढ़ को रोकता है और
जलवायु को स्वच्छ बनाता है। इसलिए हमें वृक्ष-मित्र होकर जीवन-यापन करना चाहिए।
(1) पर्यावरण से जुड़ा है-
(क) पुराने ग्रंथों का संबंध
(ख) मानव-जीवन की समृद्धि​

Answers

Answered by sachinkumar500
3

Answer:

ख)मानव जीवन की समृद्धि

Explanation:

nice question

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