पर्यावरण क्षरण का मुख्य कारण क्या है एक शब्द में उत्तर दें
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पर्यावरण (अंग्रेज़ी: Environment) शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। ... इस प्रकार एक जीवधारी और उसके पर्यावरण के बीच अन्योन्याश्रय संबंध भी होता है। ... अतः इसके अंतर्गत प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का क्षरण और अन्य प्राकृतिक आपदाएं इत्यादि ... तथा मानव द्वारा उपभोग के बदलते प्रतिरूप लगभग सारी पर्यावरणीय समस्याओं के मूल कारण हैं।
Explanation:
I think this is right
Explanation:
पर्यावरण क्षरण से तात्पर्य पर्यावरण की उस अवस्था से है जब इसके भौतिक घटकों में निरंतर क्षय होने लगता है। क्षरण की इस प्रक्रिया में जैविक प्रक्रियाओं, खासकर मानवीय गतिविधियों की बहुत बड़ी भूमिका होती है। यही नहीं पर्यावरण क्षरण इस हद तक हो जाता है कि स्व-नियंत्रण कार्यवधि या आंतरिक प्रक्रिया भी इस पर रोक नहीं लगा पाती। दरअसल मानवीय क्रियाओं व गतिविधियों के कारण पर्यावरण के तत्वों व घटकों में व्यापक रूप से फेर-बदल हो जाता है जिसके कारण पर्यावरण की गुणवत्ता में कमी आ जाती है। पर्यावरण की संरचना में आया यह नकारात्मक परिवर्तन अंततः पृथ्वी पर मौजूद हर जैविक समुदाय खासकर मानव समाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
पर्यावरण क्षरण को पर्यावरणीय गुणवत्ता में कमी होने वाले कारकों के आधार पर दो श्रेणी में रखा जा सकता है।
अतिरेक पूर्ण खतरनाक गतिविधियां
प्राकृतिक खतरा या जोखिम
पार्थिव
वातावरणीय
संपूर्ण वातावरणीय
मानव द्वारा जनित खतरे या जोखिम
भौतिक
रासायनिक
वैज्ञानिक
प्रदूषण
भौतिक प्रदूषण
भूमि प्रदूषण
जल प्रदूषण
वायु प्रदूषण
सामाजिक प्रदूषण
जनसंख्या विस्फोट
सामाजिक प्रदूषण
आर्थिक प्रदूषण
पर्यावरण क्षरण के लिए जिम्मेदार सामान्य कारणों को संक्षेप में जानियेः
वनों का हृास और पर्यावरण क्षरण
वन राष्ट्र की अमूल्य संपत्ति होते हैं। वनों से ही काष्ठ उद्योग व अन्य कई उद्योगों को कच्चा माल मिलता है। साथ ही आवास, अच्छी मिट्टी, जलावन के लिए लकड़ी आदि भी वनों के कारण ही उपलब्ध हो पाता है। मिट्टी संरक्षण व वर्षण में भी वन उपयोगी है। आज का मानव अपने-अपने विकास के लिए वनों के पर्यावरणीय व जैविक महत्व को अनदेखा कर रहा है। अतः निरंतर वन क्षेत्र को घटाता जा रहा है।
कृषि विकास और पर्यावरण क्षरण
कृषि में आए तकनीकी विकास तथा कृषि क्षेत्र में बढ़ोतरी के कारण अब खाद्यान्न समस्या उतनी गंभीर नहीं रही। खाद्यानों की बढ़ती मांग अधिक उत्पादन द्वारा पूरी कर दी गई पर यह सब पर्यावरण की बलि देने पर ही संभव हो सका है। इसके तीन मुख्य बिन्दु हैः
रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग द्वारा
सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि द्वारा
जैविक समुदाओं में परिवर्तन लाकर
जनसंख्या वृद्धि और पर्यावरण क्षरण
जनसंख्या में हुई अभूतपूर्व वृद्धि के कारण पृथ्वी पर हर उस गतिविधि में तेजी आई है जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण ही शहरों का विस्तार हो रहा है, नगरों में वृद्धि हो रही है, कृषि पर दबाव बढ़ता जा रहा है। अंततः इसके कारण जैविक संतुलन नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा है।
औद्योगिक विकास एवं पर्यावरण क्षरण
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति के कारण मानव की आर्थिक व औद्योगिक गतिविधियां बहुत अधिक बढ़ गईं, साथ ही समृद्धि भी। पर दूसरी ओर औद्योगिक विकास के कारण औद्योगिक कचरे, प्रदूषित पानी, जहरीली गैस, धुआं, राख जैसी समस्याएं भी पैदा हुईं। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में उपरोक्त सभी की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है।
नगरीकरण एवं पर्यावरण क्षरण
नगरीकरण की प्रवृत्ति के कारण लगातार प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। साथ ही वनों व कृषि योग्य जमीन में भी कमी आती जा रही है। नगरीकरण के कारण विकसित एवं विकासशील दोनों तरह के देशों के पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंच रहा है।
आधुनिक उत्पादन तकनीक एवं पर्यावरण क्षरण
अगर वर्तमान पर्यावरण संकट को आधुनिक उत्पादन तकनीक का ही परिणाम कहा जाय तो कोई गलत बात नहीं होगी। रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के प्रयोग ने जल एवं जमीन दोनों को प्रदूषित किया है। इससे मिट्टी की भौतिक-रासायनिक संरचना एवं तत्वों में कमी हुई है तथा विषैले तत्वों में वृद्धि हुई है।