Environmental Sciences, asked by sahubhola202, 4 hours ago

पर्यावरण प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव​

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Answered by aaryandalal2315
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पर्यावरण-प्रदूषण एक गंभीर समस्या का रूप ले चुका है। इसके साथ मानव समाज के जीवन-मरण का महत्वपूर्ण प्रश्न जुड़ा है। हमारा दायित्व है कि समय रहते इस समस्या के समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाएं। यदि इसके लिए आवश्यक उपाय नहीं किए गए तो प्रदूषण-युक्त इस वातावरण में पूरी मानव-जाति का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है। आज मनुष्य अपनी सुख-सुविधा के लिए प्राकृतिक संपदाओं का अनुचित रूप से दोहन कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप यह समस्या सामने आई है।सबसे पहले हमारे सामने यह प्रश्न उपस्थित होता है कि प्रदूषण क्या है? जल, वायु व भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन प्रदूषण है। एक और दुनिया तेजी से विकास कर रही है, जिंदगी को सजाने-संवारने के नए-नए तरीके ढूंढ़ रही है, दूसरी ओर वह तेजी से प्रदूषित होती जा रही है। इस प्रदूषण के कारण जीना दूभर होता जा रहा है। आज आसमान जहरीले धुएं से भरता जा रहा है। नदियों का पानी गंदा होता जा रहा है। सारी जलवायु, सारा वातावरण दूषित हो गया है। इसी वातावरण दूषण का वैज्ञानिक नाम है-प्रदूषण या पॉल्यूशन।

हमारा पर्यावरण किन कारणों से प्रदूषित हो रहा है? आज सारे विश्व के समक्ष जनसंख्या की वृद्धि सबसे बड़ी समस्या है। पर्यावरण प्रदूषण में जनसंख्या की वृद्धि ने अहम् भूमिका का निर्वाह किया है।

औद्योगीकरण के कारण आए दिन नए-नए कारखानों की स्थापना की जा रही है, इनसे निकलने वाले धुएं के कारण वायुमंडल प्रदूषित हो रहा है। साथ ही मोटरों, रेलगाड़ियों आदि से निकलने वाले धुएं से भी पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। इसके कारण सांस लेने के लिए शुद्ध वायु का मिल पाना मुश्किल हैवायु के साथ-साथ जल भी प्रदूषित हो गया है। नदियों का पानी दूषित करने में बड़े कारखानों का सबसे बड़ा हाथ है। कारखानों का सारा कूड़ा-कचरा नदी के हवाले कर दिया जाता है, बिना यह सोचे कि इनमें से बहुत कुछ पानी में इस प्रकार घुल जाएंगे कि मछलियां मर जाएंगी और मनुष्य पी नहीं सकेंगे। राइन नदी के पानी का जब विशेषज्ञों ने समुद्र में गिरने से पूर्व परीक्षण किया तो एक घन सेंटीमीटर में बीस लाख जीवन-विरोधी तत्व मिले। कबीरदास के युग में भले ही बंधा पानी ही गंदा होता हो, आज तो बहता पानी भी निर्मल नहीं रह गया है, बल्कि उसके दूषित होने की संभावना और बढ़ गई है।

पर्यावरण प्रदूषण को वायु प्रदूषण या वातावरण प्रदूषण भी कहते हैं। वातावरण दो शब्दों से मिलकर बना है- वात+आवरण अर्थात् वायु का आवरण। पृथ्वी वायु की मोटी पर्त से ढकी हुई है। एक निश्चित ऊंचाई के पश्चात् यह पर्त पतली होती गई है। वायु नाना प्रकार की गैसों से मिलकर बनती है। वायु में ये गैसें एक निश्चित अनुपात में होती हैं। यदि इसके अनुपात में संतुलन बिगड़ जाएगा तो मानव या सभी जीवों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।हम सभी अपनी सांस में वायु से ऑक्सीजन लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। मोटर गाड़ियों, स्कूटरों आदि वाहनों से निकला विषैला धुआं वायु को प्रदूषित करता है। अमेरिका में प्रत्येक तीन व्यक्ति के पीछे कार है, जिनसे प्रतिदिन ढाई लाख टन विषैला धुआं निकलता है। पेड़-पौधे इस विषैली कार्बन डाइऑक्साइड को सांस के रूप में ग्रहण कर लेते हैं और ऑक्सीजन बाहर निकालते हैं वायुमंडल में इन जहरीली गैसों का अधिक दबाव बढ़ना ही प्रदूषण कहा जाता है। कोयले आदि ईंधनों के जलाए जाने से उत्पन्न धुआं वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है।

यह अन्य सभी प्रदूषणों से अधिक भयावह है। विषैली गैसें पृथ्वी के वायुमंडल को उष्ण बना देती हैं, फलस्वरूप तापमान बढ़ जाता है। ध्रुव प्रदेशों का बर्फ पिघलने लगता है, समुद्र का स्तर ऊंचा हो जाता है। इससे समुद्र तट पर रहने वालों को खतरा उत्पन्न हो जाता है। विषैली वायु में श्वास लेने से दमा, तपेदिक और कैंसर आदि भयानक रोग हो जाते हैं, जिससे मनुष्य का जीवन संकटमय हो जाता है।

Answered by redx18
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डब्ल्यूएचओ द्वारा परिभाषा के अनुसार, “मानव स्वास्थ्य पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की स्थिति है और न केवल बीमारी और दुर्बलता की अनुपस्थिति”। यह आंतरिक के साथ-साथ बाहरी कारकों से प्रभावित होता है। आंतरिक कारकों में मानव शरीर के अंदर की समस्याएं जैसे कि प्रतिरक्षा की कमी, हार्मोनल असंतुलन और आनुवंशिक या जन्मजात विकार शामिल हैं।

बाहरी कारकों में आमतौर पर तीन प्रकार के स्वास्थ्य खतरे शामिल होते हैं: पराबैंगनी और रेडियोधर्मी विकिरण, ध्वनि प्रदूषण, कार्बन मोनोऑक्साइड और सीएफसी जैसे शारीरिक खतरे; औद्योगिक खतरों, भारी धातुओं, कीटनाशकों और जीवाश्म ईंधन दहन जैसे रासायनिक खतरों; और परजीवी, बैक्टीरिया और वायरस जैसे जैविक खतरे।

इसका स्पष्ट अर्थ है कि हमारा स्वास्थ्य काफी हद तक, हमारे पर्यावरण पर निर्भर है और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक ज्यादातर मनुष्यों द्वारा बनाए गए हैं। हम अपने ईको-सिस्टम में जो जारी करते हैं वह अंततः हमें वापस मिल जाता है

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